شان مبارک
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Hazrat Syedena Badiuddin Ahmad Zinda Shah Qutubul Madar al Hassani wal Hussaini(r)
[242 hijri - 838 hijri]
शाने हुज़ूर सय्यीदुना मदारुलआलामीन बदीउद्दीन अहमद ज़िंदा शाह कुतबुल मदार रज़िअल्लाहो तआला अनहो
हुज़ूर सय्यदना क़ुतुबे रब्बानी गौस समदानी महबूबे सुब्हानी गौसुल आज़म शैख़ मोहियुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहो ता'अला अन्हो ,
अपने मक्तूब " निताब क़ुर्बतुल वहदत " और
हुज़ूर सय्यदना अता ए रसूल {सल्लल्लाहो ता'आला अलैहे वसल्लम } , नाइ 'बुन्नबी फिल हिन्द , सुल्तानुल हिन्द ख़्वाजा गरीब नवाज़ मोईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी अजमेरी रदियल्लाहो ता'अला अन्हो ,
अपने मक्तूब " निताब अहदियतुल मुआ'रीफ " में फरमाते हैं कि :-
" बिल्लाह सुम्मा बिल्लाह हमने देखा कि हज़रत सय्यद शाह बदीउद्दीन के नक़ाब अहयानन एक या दो उठ जाते थे , तो ख़लक़ुल्लाह सजदे में गिरने लगती थी। क्योंकि जिस तरह आदम अलैहस्सलाम मसजूदे मलायक थे , उसी तरह हज़रत सय्यद शाह बदीउद्दीन मसजूदे खलायक थे और ये शरफ उनको सिर्फ दस्ते अक़दस सरवरे कौनेन सैयदे आलम सल्लल्लाहो ता'आला अलैहे वसल्लम के चेहरे पर मस करने से हुआ था। मगर आप हिजाबात में अपना चेहरा मस्तूर रखते थे , ताकि शरीयत के बाहर क़दम ना निकले।
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{तवारिख़े आइना ए तसव्वुफ़ , मुसन्निफ़ हज़रत मौलाना मुहम्मद हसन चिश्ती रामपुरी अलैहिर्रहमा } / {ज़ुल्फ़िक़ारे बदिय } / { मक्तूब " निताब क़ुर्बतुल वहदत " , गौसुल आज़म शैख़ मोहियुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहो ता'अला अन्हो} / { मक्तूब " निताब अहदियतुल मुआ'रीफ " , सुल्तानुल हिन्द ख़्वाजा गरीब नवाज़ मोईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी अजमेरी रदियल्लाहो ता'अला अन्हो }
(हिन्दुस्तान मैं इस्लाम के पेहले मुबल्लिग़े आज़म हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रदियल्लाहू तआला अन्हू)
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हर तारीख़ दां हिंदुस्तानी ये बात जानता ही है के पेहली सदी हिजरी के दौरे अखीर मैं जिस मुजाहिद ने सर ज़मीने हिंदुस्तान पर सबसे पेहले इसलाम का परचम बुलंद किया वो ज़ात हज़रत मोहम्मद बिन क़ासिम अल्वी रेह्म्तुल्लाहे अलैह की है आपने सबसे पेहले मुलतान और सिंध के इलाक़े पर फतेह हासिल फरमाकर इस्लामी हुकूमत क़ायम की थी मगर 90 हिजरी मैं आपको बग़दाद बुलाकर सुलेमान बिन अब्दुल मुलक ने आपको शहीद कर दिया था? फिर 90 हिजरी से लेकर 282 हिज्री तक हिंदुस्तान की हुदूद मैं कोई भी मुबल्लिग़ ए इस्लाम बाज़ाब्ता तौर पर तबलीग़ी दस्तूर औ निज़ाम लेकर दाखिल नहीं हुआ,यहां तक के फिर हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रदियल्लाहू तआला अन्हू सन् 282 हिज्री मैं मुबल्लिग़ ए आज़म बनकर तशरीफ लाऐ और देखते ही देखते आपने हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे पर पर्चमे इस्लाम को इतना बुलंद कर दिया के जो बयान नही किया जा सक्ता.
हज़रत मोलाना सय्यद इक़बाल जौनपुरी फरमाते हैं-हुज़ूर सय्यिदुना बदीउद्दीन अहमद ज़िंदा शाह मदार क़ुद्दिसा सिर्रोहू उस वक़्त हिंदुस्तान तशरीफ लाऐ जब यहां मुसलमानों का नाम औ निशान भी नही था मोहम्मद बिन क़सिम की अल्वी की हुकूमत ज़वाल पिज़ीर हो चुकी थी(तारीख़ सलातीने शरक़िया वा सूफ़ीयाऐ जौनपुर & तारीख़े हिंदी)
(क़ुत्बुल मदार दुनया के चारो गोशों मैं गश्त करता है)
इमाम याफई अलेहिर्र्हमा अल हावी मैं और इमाम इबने हजर मक्की फतावा हदीसीया मैं रक़म फरमाते हैं;;;--
वो क़ुतब (मदार) जो ग़ोस ओ क़ुतब के मक़ाम औ मरातिब का जामेअ वा मुताहम्मिल होता है,उस को अल्लाह तआला दुन्या के चारों गोशों मैं गश्त कराता है जेसे आसमान के चारो तरफ सितारे चक्कर लगाते है,और अल्लाह तआला उसकी ग़ैरतदारी मैं उसके आहवाल को खास औ आम सै पौशीदा रखता है वो आलिम होने के बा वजूद नाख्वानिदा लगता है,वो ज़हीन होते हुए भी कम फेहम मअलूम होता है,दुनया से बे नियाज़ होकर भी दुनया को अपनी गिरफ्त मैं रख्ता है,खुदा से क़रीब तर होते हुए भी कुछ दूर सा लगता है,दर्द मन्द होते हुए भी तंग दिल जान पढ़ता है,बेखौफ होने के बा वाजूद सेहमा सेहमा मेहसूस होता है,औलीया अल्लाह मैं उसका मक़ाम ऐसा है जेसे दाएरे के मरकज़ नुक़ते का,उसी पर आलम की दुरुस्तगी का दारो मदार होता है(फतावा हदीसिया सफ्हा-322)
इबारते मज़्कूरा सरकारे मदारुलआलामीन रदियल्लाहू तआला अन्हु की ऐक इजमाली सवानेह उम्री(biography)है,
तारीख़ शाहिद है के आपने आफाक़े आलम का ग़श्त फरमाया है ऐशीया,यूरोप,अमेरिका औ अफ्रीक़ा,और ऑस्ट्रेलिया,सीरीया,हिजाज़,ईराक़,
अफ़ग़ानिस्तान,ब्रिटेन,बरतानिया,अ
लमानिया,चीन,रोम,यूनान,ईरान,मिस
्र,फारस,सुडान,मराकिश,जापान,कोल
मबो,इंडोनेशीया,श्री लंका,बंगला देश,नेपाल गौ के पूरी दुनया के अकसर मक़ामात पर आज भी आप के चिल्ले जात,आपके खुल्फा के मज़ारात,आपकी गदीयां,आपके तकीये और आपके नाम से मनसूब दीगर निशानियां आपकी अज़मतों की यादगार हैं.
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हुज़ूर सय्यिदुना बदीउद्दीन अहमद ज़िंदा शाह मदार क़ुद्दिसा सिर्रोहू ने पूरी दुनया का सफर फरमाया था(तबक़ाते शाहजहांनी)
हुज़ूर क़ुत्बुल मदार क़ुद्दिसा सिर्रोहू का दाएरा ए तबलीग़ औ इरशाद बहुत वसीअ है,दराज़िये उम्र के सबब ज़ियादा से ज़ियादा लोगों को आप सै फ़ैज़ियाब होने का मोक़ा मयस्सर आया एक एक मजलिस मैं हज़ार हा लोग दाखिल ए इस्लाम होकर मुरीद होते थे,इसलिये आपके मुरीदीन वा ख़ुल्फा की तादाद का शुमार मुमकिन ही नही(बानियाने सलासिल)
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सिर्फ हिंदुस्तान ही मैं आपके चिल्लागाहों सै मुताल्लिक़ ज़मीन कमअज़ कम पचास लाख़ बीघा से भी ज़ादा है और हिंदुस्तान ही मैं सिलसिलाए मदारिया की ख़ानक़ाहों,गदियों और उनसे मुताल्लिक़ तकियों की तादाद तक़रीबन 3 लाख़ है और हिंदुस्तान ही मैं आपकी मशहूर चिल्लागाहो की तादाद 1400 सै ज़ादा है,
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(ज़िन्दा शाह मदार केहने की वजाह)
हज़रत वाजिद अली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं(तर्जुमा)-हज़रत बदीउदीन क़ुत्बुल मदार के कमालात मुलके हिनदुस्तान मैं शोहरत ए आम्मा रख्ते हैं और आं जनाब के तसर्रूफात हयात औ मुमात मैं बराबर हैं(मत्लाउलउलूम व मज्माउल फुनून फारसी)
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हज़रत शैख़ अब्दुलर्र्हमान चिशती रदोलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं-शैख़ बदीउद्दीन शाह मदार के तसर्रुफ़ात हयात औ मुमात मैं बराबर हैं(मिरअतुल असरार)
निगाह वाले बसद ऐतबार कहते हैं
जो अहले दिल हैं वो बे इख़्तेयार कह्ते हैं
हयात हैं मेरे आक़ा हयात बख़्श भी हैं
इसीलिये उन्हें ज़िन्दा मदार कह्ते हैं
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सरकारे मदारुलआलामीन ब हुक्मे रसूल सन् 282 हिज्री मैं सरज़मीने हिंदुस्तान मैं सबसे पेहले खमबात(गुजरात) मैं तशरीफ लाऐ यहां आपने अल्लाह तआला की बारगाह मैं दुआ की,
हज़रत ग़ुलाम अली नक़्शबंदी क़ुद्दिसा सिर्रोहू इर्शाद फर्माते हैं-हज़रत ज़िन्दा शाह मदार ने दुआ फरमाई ऐ अल्लाह जल्ला शानाहु ऐसा करदे के मुझे भूक और प्यास ना लगे और मेरा लिबास मैला और पुराना ना हो, वेसे ही हुआ की इस दुआ के बाद बक़िया पूरी उम्र मैं आपने कुछ ना खाया और ना पिया और ना आपका लिबास मैला और पुराना हि हुआ वही एक लिबास विसाल तक काफी रहा (दुर्रुल मुआरिफ सफ्हा-147,मतबुआ इस्तंबुल तुर्की)
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यहीं खमबात ,गुजरात मैं सरकारे मदारुलआलामीन को नबी ए पाक सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्ल्म ने अपने दस्ते मुबारक से आपको 9 लुक़्मे खिलाऐ और कहा के ऐ बदीउद्दीन अब तुम्को खाने पीने की ज़रुरत नही होगी और उस्को खाकर आप पर तमाम तबक़ाती,अर्ज़ी,वा समावी आप पर रोशन हो गऐ और जन्नती जुब्बा पेहनाकर ये बिशारत दी के अब ये कभी मैला,पुराना, ना होगा और इस्को धोने और साफ करने की हाजत नहीं होगी
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इसके बाद 282 हिज्री से लेकर 838 हिज्री यानी विसाल तक ना कुछ खाया और ना पिया और सोने की भी हाजत नही हुई और आप मक़ामे समदिय्यत पर फाइज़ हो गए 557 साल तक आपने ना कुछ खाया ना पिया ना सोये ना लिबास ही बदला बस पूरी उम्र आपने इसलाम की तब्लीग़ फरमाई और सारी उम्र का रौज़ा रखा,फिर नूरे मुजस्सम ताजदारे रिसालत नबी ए पाक सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्ल्म ने आपके चेहरे पे अपना दस्ते मुनव्वर फेर दिया जिस के सबब आपका चेहरा मुबारक इतना रोशन हो गया के जो भी देख लेता उस नूर की ताब ना लाकर के सजदा रेज़ हो जाता था इसी सबब आप चेहरे पे 7 नक़ाब ढ़ाले रहते थे
(तबक़ाते शाहजहांनी,,अखबारुल अख्यार,सफीनातुल औलिया)
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सदहा बरस ना खाकर भी ज़िन्दा रहे मदार
ये है दलील देखीये ज़िन्दा मदार की
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शाहजहां बादशाह के बेटे और हज़रत औरंग्ज़ेब आलमगीर रेह्म्तुल्लाहे अलैह के भाई हज़रत हज़रत दारा शिकोह क़ादरी फरमाते हैं-- आप मक़ामे समदिय्यत पर है जो सालिको का मक़ाम है और अल्लाह ने आपको ऐसा हुस्न औ जमाल अता किया था के जो आपको देख लेता था वो बेखुदी के आलम मैं सजदा रैज़ हो जता था इसलिये आप हमेशा नक़ाब ढ़ाले रहते थे(सफीनतुल औलिया)
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मोलाना सय्यद शाह मोहम्मद कबीर अबुल अलाम फरमाते हैं--
हज़रत बदीउद्दीन शाह मदार बज़ाहिर कुछ नही खाते थे और उनका कपढ़ा कभी मैला नही होता था और ना उस पर मक्खी बेठती थी और उनके चेहरे पर हमेशा नक़ाब पढ़ा रहता था,निहायत हसीन औ जमील थे,चारो क़ुतुब आसमानी के हाफिज़ औ आलिम थे,और तमाम दुन्या का सफर उनहोने किया था,और वो अपने वक़्त के क़ुत्बुल मदार थे(तज़किरातुल किराम तारीख खुलफाऐ अरब वा इसलाम सफ्हा-493)
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हज़रत मौलाना हसन चिश्ती रामपुरी फरमाते हैं--
हज़रत क़ुतबे रब्बानी ग़ौस ए समदानी शैख अब्दुल क़ादिर जीलानी मेहबूबे सुबहानी ने अपने मकतूब 'निताब किबरतुल वेहदत'मैं और हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती सनजरी रेह्म्तुल्लाहे अलैह ने अपने मकतूब निताब उहदीयतुल मुआरिफ लिखा है के बिल्ला सुम्मा बिल्ला हमने देखा के हज़रत शाह बदीउद्दीन के नक़ाब आहयानन ऐक या दो उतर जाते थे तो मख्लूक़े खुदा सज्दे मैं गिरने लगती थी,क्युंके जिस तरहां हज़रत आदम अलैहिस्सलाम मसजूदे मलाइक थे इसी तराह हज़रत बदीउद्दीन मसजूदे खलाइक़ थे और ये शरफ उनको सिर्फ दस्ते अक़दस हज़रत सरवरे कौनैन सय्यदे आलम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्ल्म के चेहरे पर मस्स करने सै हुआ था मगर आप हिजाबात ए दबीज़ मैं अपना चेहरा मसतूर रखते थे
ताके शरीअत सै बाहर क़दम ना निकले(तवारीख़ आईना ऐ तसव्वुफ,रज़ा लाईब्ररी रामपुर)
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सरकारे मदारुलआलामीन का हुज़ूर ग़ौस ए आज़म की कैफिय्यत ए जलाली को जमाल मैं तबदील करना
हज़रत अल्लामा मोहम्म्द जानी इबने अहमद अल क़ानी क़ादिरी फरमाते हैं--
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ुत्बुल मदार जब बग़दाद शरीफ तशरीफ फरमा हुए तो हज़रत क़ुत्बुल मदार और हज़रत ग़ौस ए आज़म क़रीब ए सोहबत हुए और दरिया ए मोहब्बत ए हक़ मैं ग़ोताज़न हुए उस वक़्त हज़रत ग़ौस ए आज़म की केफिय्यत जलाली थी बाज़ मुअर्रेखीन ने तहरीर फरमाया के हज़रत क़ुत्बुल मदार की तवज्जो सै हज़रत ग़ौस ए पाक का जलाल जमाल मैं तबदील हो गया
(अल कवाकिबुदद्रारिय
ा फी तनवीर ए मनाक़िबुल मदारिया,अरबी,,उर्दु तर्जुमा मोलना मोहम्मद बाक़र जाएसी सफ्ह-9)
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हज़रत ग़ौस ए आज़म की बहन हज़रत बीबी नसीबा की सूनी गोद मदार ए पाक कि दुआ से भर गई
ज़ियाउद्दीन अहमद अल्वी मुजद्दिदि तेहरीर फरमाते हैं--
हज़रत ग़ौस ए पाक की हमशीरा के यहां औलाद नही होती थी उन्होने आपसे दुआ की इसतेदा की हज़रत शाह मदार की दुआ की बरकत सै उनकी औलाद हुई(मिरअतुल इनसाब सफ्ह-158)
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सहिब ए खुमखाना ए तसव्वुफ रक़म फरमाते हैं--
बीबी नसीबा की कोई औलाद नहीं थी,जब क़ुत्बुल मदार बग़दाद तशरीफ ले गऐ बीबी नसीबा आपकी दुआ की तालिब हुईं हज़रत क़ुत्बुल मदार की दुआ सै दो लड़के पैदा हुऐ (खुम खाना ऐ तसव्वुफ सफ्ह-368)
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हज़रत मुफ्ती फसीह अकमल क़ादरी फरमाते हैं--
बीबी नसीबा ने जो हज़रत ग़ौस पाक सै औलाद के लिये इसतेदा की,चुनांचे मौसूफ ने उन्को हज़रत शाह मदार की तरफ रुजू कराया और आपकी दुआ की बरकत सै बारी तबारक व तआला ने उनको 2 बेटे इनायत फरमाये(सीरत क़ुत्बे आलम)
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मुल्ला कामिल तेहरीर फरमाते हैं--
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ुतबुल मदार पांच्वीं सदी हिज्री मैं अरब की सिहायत फरमाते हुऐ बग़दाद तशरीफ लाऐ और ग़ौसुस्सक़्लैन अबू मोहम्मद महीद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी क़ुद्दिसा सिर्रोहुनूरानी से मुलाक़ात फरमाई हुए हुज़ूर ग़ौस ए पाक ने हज़रत क़ुतबुल मदार के कमालात का मुशाहिदा फरमाया,और अपने दोनों भांजों को लेकर मखज़ने इसरार हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ुत्बुल मदार की खिदमत मैं तशरीफ लाऐ और फरमाया के ये दोनो मेरी छोटी बहन बीबी नसीबा के दिलब्न्द हैं,आं बिरादर की ज़ाते बाबरकात सै ज़ाइरुल मराम होना चाहते हैं ,एक क़ौल के मुताबिक़ हुज़ूर ग़ौस ए पाक ने बीबी नसीबा के लिये खुद ही हज़रत क़ुत्बुल मदार सै दुआ के लिये दरख्वाअस्त की थी फरमाया के ऐ बिरादर रब्बुल इज़्ज़त की दरगाह मैं मेरी बहन के लिये दस्त ए दुआ फरमाइये(सम्रतुल क़ुदस फारसी)
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मुल्ला कामिल मज़ीद तहरीर फरमाते है--
क़ुत्बुल मदार ग़ौस ए पाक की मुलाक़ात के बाद हज्ज को चले गऐ और सफर ए हज्ज की वापसी मैं दूसरी बार तशरीफ लाऐ और बीबी नसीबा ने ग़ौसे पाक कि वसिय्यत के मुताबिक़ अपने दोनो फरज़िनदो को जो हज़रत क़ुतबुल मदार की दुआ सै पैदा हुऐ थे बारगाहे मदारिय्यत मैं पैश किया और हज़रत शाह मदार ने उनको जान औ दिल सै क़ुबूल किया और उन्है लेकर इस्तंबुल (तुर्की) रवाना हो गए (सम्रतुल क़ुदस फारसी)
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हज़रत ग़ौस ए पाक के भान्जे हज़रत जमालुद्दीन का विसाल बचपन शरीफ मैं हो गया तो हज़रत क़ुत्बुल मदार ने उन्को ज़िन्दा फर्माये ये केह्ते हुए की उठो जमालुद्दीन जानेमन जन्नती और आप ज़िन्दा हो गए और आप सरकारे मदरुलआलमीन के बहुत चहेते मुरीद और खलीफा हुए हैं आप हि सै सिलसिला ए मदारिया मैं मलंगो का सिलसिला जारी हुआ सरकारे जमालुद्दीन जानेमन जन्नती के सर पे हुज़ूर मदारे पाक ने अपना द्स्ते मुबारक रख दिया था तो आप ने पीर की मोहब्बत मैं कभी भी बालो को सर से जुदा ना किया आपका मज़ार शरीफ हिल्सा बिहार मैं है आपको मलंगे आज़म कहा जाता है आपकी उम्र शरीफ भी 400 साल हुई
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सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती सनजरी अजमेरी से सरकारे मदारे पाक की मुलाक़ात
शबाब चिश्ती अक्बराबादी लिख्ते हैं--
चिल्ला हज़रत शाह मदार रदियल्लाहु तआला अन्हू अजमेर की मशरिक़ी पहाड़ की चोटी पर है जो 700 फिट बुलंद है,इस पर सय्य्द बदीउद्दीन उर्फ शाह मदार मकनपुरी जो हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के ज़माने मैं आये थेअर्से तक इबादते इलाही की थी(हालात तारा गढ़,सवानेह उमरी मीरा हुसैन खंग सुवार)
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इसके अलावा हज़रत मौलाना हकीम फरीद अहमद मुजद्दिदी नक़्शबंदी ने अपनी किताब मदारे आज़म मैं और हज़रत शैख अब्दुलर्र्हमान चिश्ती रदौलवी मे अपनी किताब मिरअतुल असरार मैं और फसूले मसऊदिया मैं और शैख वजिहुद्दीन अशरफ ने बेहरे ज़ख्खार मैं और मुनतखबुल अजाइब मैं,और तज़किरातुलमुत्तक़ीन मैं और इस्के अलावा कई किताबो मैं तेहरीर है के हज़रत खवाजा ग़रीब नवाज़ ने हज़रत मदारुलआलामीन सै कोकला पहाड़ी पर मुलाक़ात फरमाई,इसी पहाड़ी पर हज़रत क़ुतबुल मदार ने क़याम किया आज मदार टीकरी के नाम सै मौसूम है इस्के अलावा अजमेर शरीफ मैं मदार स्टेशन और मदार गेट क़ाबिल ए ज़िक्र हैं और मदार शाह मस्जिद भी,
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(हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो मक़ामे उवेसिय्यत से सरफराज़ हैं)
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हज़रत सय्यिदुना मखदूम अशरफ जहंगीर सिमनानी रेहम्तुल्लाहे तआला अलेह फरमाते हैं-अल्लाह अज़्ज़ावजल के वलीयों मैं से कुछ हज़रात वो हैं जिनहैं मशाइखे तरीक़त और मक़ामे हक़ीक़त के अकाबिर बुज़ुर्ग लोग उवेसी केहते हैं? के इन हज़रात को ज़ाहिर किसी पीर की ज़रूरत नही होती क्युके हज़ रत रिसालत पनाह हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलेहि वसल्ल्म अपने हुजरए इनायत मैं बज़ात खुद उनकी तरबिय्यत व परवरिश फरमाते हैं इसमैं किसी भी ग़ेर का कोई वास्ता वसीला नहीं होता?जेसा कि हज़रत उवेसे क़रनी रज़िअल्लाहो तआला अन्हो ने आप सल्लल्लाहो तआला अलेहि वस्ल्लम से तरबिय्यत पाई,ये मक़ामे उवेसिय्यत बहुत अज़ीम मक़ाम और बहुत बुलंद ओ बाला रुतबा हे अगर किसी की यहां तक रसाई होती हे?इस दौलत ए उज़्मा के मयस्सर होती हे ब मोजबे आयते करीमा ,ये तो अल्लाह का मखसूस फज़्ल हे वो जिसे चाहता हे अता कर देता हे और अल्लाह तआला अज़ीम फज़्ल वाला हे(लताइफ ए अशरफी सफ्हा353,लतीफा 14 वं)
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आप मज़ीद फरमाते हैं-हज़रत शैख बदीउद्दीन अल मुलक़्क़ब ब शाह मदार क़ुद्दिसा सिर्रोहू भी उवेसी हुए हैं और आप बहुत बुलन्द मशरब के बुज़ुर्ग हैं बाज़ नवादिर उलूम जेसे हीमिया, ,सीमिया, कीमिया और रीमिया उनसे मुशाहिदे मैं आए जो इस गिरोहे औलिया मैं नादिर हि किसी को हासिल होता हे (लताइफ ए अशरफी सफ्हा354,लतीफा 14 वं)
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मोलना रौम फरमाते हैं- रीमिया,सीमिया व हीमिया उलूम जिन्हैं औलिया अल्लाह के सिवा कोइ नहीं जानता(मिरअतुल असरार)
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(हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो से बुग्ज़ का अनजाम)
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हज़रत मुजद्दिद ए अल्फे सानी शैख अहमद फारूक़ी सरहिनदी रेहमतुल्लाहे अलेह फरमाते हैं-जो शख्स क़ुत्बुल मदार का मुनकिर हे या वो बुज़ुर्ग (क़ुत्बुल मदार) आज़ुरदा हैं तो अगर चे वो ज़िक्रे इलाही मैं मशग़ूल हे लेकिन वो रुशदो हिदायत कि मनज़िल से मेहरूम हे(मकतूबात इमाम रब्बानी जिल्द दोम,दफतर अव्व्ल,हिस्सा चहारुम,मकतूब नमबर260)
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(हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो ताबेई हैं)
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आप हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो की खिदमत मैं अरसाए दराज़ तक रहे हुज़ूर हाजी साहब के मज़ार के पास आज भी चिल्ला ए मदारुलआलमीन ज़ियारत ए खास औ आम है,हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो की सहाबिय्यत को वक़्त के जलील उल क़द्र उलमा वा मशाइख ने तस्लीम कियाहे अल मुखतसर,हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सियूती रेहम्तुल्लाहे अलेह ने और हज़रत अल्लामा इब्ने हज्र मक्की ने अपनी किताब उल असाबा फी मारीफतुस्सहाबा मैं और क़ाज़ी अतहर मुबारकपुरी ने रिजालुल हिंद मैं हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो के तफ्सीली हालात लिखे हैं आप ने 632 साल की उम्र शरीफ पाई,,675 हिज्री मैं खुद आपके साहबज़ादे हज़रत हज़रत मेहमूद बिन हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो के तफसीली हालात और उनका मोजज़ा ए शक्कुल क़मर का मुशाहिदा करना और हिंदुस्तान से बलादे अरब को जाना और मुशर्र्फ व इसलाम होना बयान किया हे,हुज़ूर ए अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहि वस्ल्ल्म ने आप्को दराज़ि ए उम्र कि दुआ दि थी इसलिये आपकी उम्र शरीफ 700 साल के क़रीब हुइ नबी ए पाक सल्लल्लाहो तआला अलैहि वस्ल्ल्म ने आपको अपनी कन्घी मुबारक भी दी थी,
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आला हज़रत हुज़ूर अशरफी मियां किछोछवी रेह्मतुल्लाहे अलैह को अपनी किताब सहाइफे अशरफी मैं और हज़रत अबदुर्रेहमान चिश्ती रेहमतुल्लाहे तआला अलैह ने मिरअतुल असरार मैं और हज़रत मुफ्ती फैज़ अहमद उवेसी क़ादिरी ने अपनी किताब हिंद औ पाक निगाहे नुबुव्वत मैं और तवील उल उमर मैं हाजी साहब को सहाबी लिखा है और भी हवाले लिखे जा सकते हैं मगर इतने पर ही बस करता हू,
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तारीख ए हिन्दी मैं और तारीख शरक़्र्रीया जौनपुर मैं हज़रत ईसा जौनपुरी ने और मदारे आज़म मैं हज़रत हकीम फरीद अहमद नक़्शबनदी ने और हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सियूती ने अपने तज़किरे मैं हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो से ह्ज़रत सय्यिदुना मदारुलआलामीन की मुलाक़ात और आपकी खिदमत मैं अरसए दराज़ रेहने और वहां चिल्ला कशी भी आपने फरमाने का ज़िक्र किया है?
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आज भी हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो के मज़ार शरीफ जो भटींडा(पुंजाब)भारत मैं हे वहाँ हुज़ूर सय्यिदुना मदारुलआलामीन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो ताबेई रज़िअल्लाहो तआला अन्हो का चिल्ला शरीफ और मदारी गादी आपकी हिंदी सहाबी ए रसूल अबुल रज़ा बाबा हाजी रतन रज़िअल्लाहो तआला अन्हो सै मुलाक़ात की शाहिद हैं आपने माथे की आंखो से सहाबी ए रसूल कि ज़ियारत फरमाइ है?
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(शान ए हुज़ूर सय्यीदुना मदारुलआलामीन रज़िअल्लाहो तआला अनहो
हज़रत औरन्गज़ेब आलमगीर के भाई और शाहजहाँ बादशाह के बेटे हज़रत दारा शिकोह क़ादरी तेहरीर फरमाते हैं-आप का लक़ब शाह मदार हे आप शैख मोह्म्म्म्द तेफूर शामी रेहमतुल्लाहे तआला अलेह के मुरीद हैं,आप का सिलसिला आपकी उम्र की तवालत की वजाह सै या किसी और वजाह सै 5 या 6 वास्तों सै आं हज़रत सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम तक पहूंचता है आपके अजीब औ ग़रीब आहवाल वा अतवार हैं हज़रत शाह मदार का दरजा इतना बुलन्द औ बाला है के इहाता ए तेहरीर मैं नहीं आ सकता (सफीनतुल औलिया सफ्हा 187)
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हज़रत साय्यिदुना ग़ूलाम अळी नक़्शबन्दी मुजद्दिदी रेहमतुल्लाहे तआला अलेह फरमाते हैं-एक दिन मजलिस मैं अक़ताब का ज़िक्र हुआ आं हज़रत ने फरमाया कि हक़ तआला अजरा ए कारखाना ए हसती क़ुतबे मदार को अता फरमाता हैऔर गुमराहों की रेहनुमाई व वा हिदायत व इरशाद का काम क़ुत्बे इरशाद के हवाले का करता है और इसके बाद फरमाया हज़रत बदीउद्दीन शैख क़ुद्दिसा सिर्रहु क़ुत्बुल मदार थे और अज़ीम शान वाले थे(दुर्ररुल्ल मुआरिफ सफहा117 मतबुआ इसतम्बुल तुर्की )
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हज़रत नसीरउद्दीन चिराग़ देहल्वी के मुरीद और खलीफा हज़रत मीर जाफर मक्की रेहमतुल्लाहे तआला अलेह फरमाते हैं-क़ुत्बे आलम हर ज़माने वा अस्र मैं एक होता है एहले दुनिया व आखिरत मैं सै तमाम मोजुदात यानी आलमे सिफ्ली व अलवी (आलामीन) का वजूद क़ुतबे आलम के वजूद से क़ायम हे ,क़ुतबे आलम को बे वास्ता हक़ तआला सै फैज़ पहुचता है और क़ुत्बे आलम को क़ुत्बुल मदार भी कहते हैं
(बेहरुल मआनी सफ्हा 83)
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हज़रत शैख अहमद सरहिंदी मुजद्दिद ए अलफे सानी फारूक़ी रेहमतुल्लाहे तआला अलेह फरमाते हैं-हज़रत खिज़्र पेग़म्बर अळैहिस्सालाम ने फरमाया के अल्लाह तआला ने मुझे और इलयास अळैहिस्सालाम को क़ुत्बुल मदार का मुईन बनाया जो अल्लाह तआला का ऐसा वली है जिस्को अल्लाह तआला ने आलम का मदार बनाया और आलम की बक़ा उसके वजूद व इफाज़ा की बरकत के सबब क़ायम की(अल हदीक़तुन्नादीया फी शरहुत्तरीक़तुल नक़शब्नदिया)
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हज़रत सय्यद अबुल हुसैन अहमद नूरी मारहरवी क़ुद्दिसा सिर्रोहू फरमाते हैं-हर ज़माने मैं एक ग़ोस होता है के उसके ज़माने के तमाम औलिया ए किराम का सरदार व सरताज होता है और उस्के ज़माने का कोइ वली उसका मरतबा नहीं पा सकता उसको क़ुत्बुल मदार भी कह्ते हैं इसलिये के तमाम आलम के क़ारोबार का उसी पर दारो मदार होता है और तमाम नज़्म व नस्क़ उसी के हाथों नाफिज़ होता है और निफाज़ पाता है(शरीअत व तरीक़त सफहा 14)
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हज़रत शैख अहमद सरहिंदी मुजद्दिद ए अलफे सानी फारूक़ी रेहमतुल्लाहे तआला अलेह फरमाते हैं-क़ुत्बुल अक़्ताब यानी क़ुत्बुल मदार का सर आं हज़रत सललल्लहो तआला अलैहि वसल्ल्म के नीचे है क़ुत्बुल मदार उन्ही की हिमायत व रिआयत सै अपने ज़रूरी उमूर को सरअन्जाम करता और मदारीयत सै ओह्दा बरआम होता है ( मकतूबात इमाम रब्बानी सफ्हा118)
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हज़रत ज़िया अली अशरफी चिश्ती तेहरीर फरमाते हैं-सय्यद बदीउद्दीन नाम था और कुन्नियत अबू तुराब थी क़ुत्बुल मदार का बुलन्द औ बाला मक़ाम बारी तआला ने वरीअत फरमाया था और मदारुलआलामीन का खिताब बारगाहे नबवी सललल्लहो तआला अलैहि वसल्ल्म से अता हुआ था(मर्दाने खुदा सफहा417)
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