क़ुतुबुल अक़्ताब
हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अरग़ून रह.
मुकतदाए औलिया पेश्वाए असफ़िया शहबाज़े आमाने विलायत व करामत, शहसवारे मैदाने सख़ावत व क़नाअत, हादिये राहे शरीअत साक़िये जामे तरीक़त,मुअल्लिमे रुमूज़े हिकमत, वाक़िफ़े असरारे हक़ीक़त, ग़व्वासे बहरे मारिफ़त, मौरदे फ़ुयूज़े इलाही, पैकरे अख़्लाक़े मुस्तफ़वी वारिसे औसाफ़े मुरतज़वी, क़ुदवतुल आरिफ़ीन, उम्दतुल कामिलीन, रहबरे दीन, कि़ब्ला ए अहले यकीन, कुतुबुल अस्र, ग़ौसुल दहर, सुल्तानुल आरिफ़ीन हज़रत ख़्वाजा सय्यिद अबु मुहम्मद, मुहम्मद अरग़ून जाफ़री मदारी हल्बी मकनपुरी रजि़. ख़ानदाने फ़ात्मी के रौशन चिराग़, सिलसिलाए आलिया मदारिया अरग़ूनिया के सरगिरोह, बहुत बड़े और नामवर वली, जामिए कमालाते सूरी व मानवी बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। ग़ैर मुन्कसिम हिन्दुस्तान के गोशे गोशे में आप के ख्वारिक़ व करामात, मुहासिन व कमालात और रूहानियत व मारिफ़त की आम शोहरत व मक़बूलियत है।
आप ने अपने सर चश्मा ए फैज़ व इरशाद से एक आलम को सैराब फ़रमाया। आप की तवज्जोह से हज़ारों गुम गश्तगाने राह राहे हिदायत पर गामज़न हुए और हज़ारों के दामने तलब गौहरे मक़सूद से भरे।
आप सरकारे सरकारां शहंशाहे औलिया ए किबार सय्यदुल अफ़राद कुतबे वहदत हुज़ूर सय्यदना बदी उद्दीन अहमद जि़न्दा शाह मदार रजि़. के बिरादरज़ादह फ़रज़न्दे मानवी, मुरीद, ख़लीफ़ा और सज्जादह नशीन हैं।
इस्म शरीफ ‘‘मुहम्मद’’ कुन्नियत ‘‘अबु मोहम्मद’’ और लक़ब ‘‘अरगून’’ है। आप का मौलद क़स्बा चुनार शहर हलब मुल्क शाम है।
नसब नामा:-अल सय्यदुश्शरीफ़ अबू मुहम्मद अरग़ून, इब्ने अलसय्यदुल शरीफ़ अब्दुल्लाह, बिन सय्यद कबीर उद्दीन, बिन सय्यद, वजीहउद्दीन, बिन सय्यद यासीन, इब्ने सय्यद मोहम्मद, इब्ने सय्यद दाउद, बिन मोहम्मद, बिन सय्यद इब्राहीम, बिन सय्यद मोहम्मद, बिन सय्यद इस्मार्इल, बिन सय्यद मोहम्मद, इब्ने इस्हाक़, बिन सय्यद अब्दुल रज़्ज़ाक, बिन सय्यद निज़ाम उद्दीन, बिन सय्यद अबु सर्इद, बिन सय्यद मोहम्मद, इब्ने सय्यद जाफर, बिन सय्यद महमूद उद्दीन (बिरादर हज़रत सय्यद बदी उद्दीन अहमद जि़न्दा शाह मदार) बिन सय्यद अली, बिन सय्यद बहा उद्दीन, बिन सय्यद ज़हीर उद्दीन अहमद, बिन सय्यद इस्माईल सानी, बिन सय्यद मोहम्मद, बिन सय्यद इस्माईल, बिन सय्यद इमाम जाफ़र सादिक़, बिन सय्यद इमाम मोहम्मद बाक़िर बिन सय्यद अली औसत ज़ैनुल आबिदीन, बिन इमाम हुसैन इबने अली (रिज़वान उल्लाह अलैहिम अजमईन)
विलादत शरीफ
:- यौमे जुमा बवक़्ते फ़ज्र यकुम रबीउल अव्वल 783 हि.
तालीम व तरबियत
:- मदरसा इब्राहीमिया ख़ानक़ाहे बदीइय्या मदारिया
बमुक़ाम बैरूत:- ये मदरसा आप के जद्दे मुकर्रम हज़रत अल्लामा ख्वाजा सय्यद इब्राहीम रजि़. ने क़ायम फ़रमाया था। वह अपने ज़माने के मुतबह्हिर आलिम व साहिबे कमाल बुज़ुर्ग और ख़ानक़ाहे मदारिया बैरूत के गद्दी नशीन थे ।
आमदे हिन्दुस्तान:- आठवीं सदी हिजरी के आख़िर में हुज़ूर सरकारे सरकारान सय्यद बदी उद्दीन अहमद कुतुबुल मदार रजि़. बग़रज़ हज हिन्दुस्तान से हिजाज़ रवाना हुए । मक्का मुकर्रमा पहुँचे तो आप की आमद की ख़बर अतराफ़ व जवानिब में फैल गर्इ ।
जब यह ख़बर क़स्बा चुनार शहर हलब पहुँची तो हुज़र सय्यद मोहम्मद अरगून ने अपने वालिद मोहतरम हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह से अपने शौक़े दीदार का इज़हार किया । वालिद मोहतरम आप को और आपके दोनों छोटे भाइयों (हज़रत क़ुदवतुल आरफ़ीन ख्वाजा सय्यद अबु तुराब फ़नसूर व हज़रत शहबाज़े तरीकत ख्वाजा सय्यद अबुल हसन तैफ़ूर रजि़.) को लेकर मक्का मुकर्रमा में हाजि़र हुए और शरफ़े मुलाक़ात हासिल किया । हुज़ूर सय्यदी कुतुबुल मदार की निगाहे इल्तिफ़ात बच्चों की तरफ़ हुर्इ तो उनकी जबीनों पर अनवारे सआदत मुस्कुराने लगे । हुज़ूर मदारूल आलमीन ने हरसह ख़्वाजगान को सेहने मस्जिदे हराम में बैअ़त फ़रमाया और उन पर बे शुमार नवाजि़शात फ़रमायीं! उन्हे तक़र्रुबे ख़ास से नवाज़ा और हमेशा अपने साथ रखना पसंद किया।
अरकाने हज व जि़यारत से फ़राग़त के बाद जब हुज़ूर वाला आज़िमे हिन्दुस्तान हुए तो पहले अपने आबार्इ वतन शहर हलब कस्बा चुनार पहुँचे और तीनों शहज़ादों की सआदत मन्दी से उनकी वालिदा माजिदा और अहले ख़ानदान को मुत्तिला फ़रमा कर अपनी मइय्यत (हमराही) में रखने की इजाज़त ली । आप ख़ुद ही साहिबे इख्तियार और बर सरे इक्तितदार थे इसलिए तमाम अहले खानदान ने ब खुशी खातिर मुआमला आप की मरज़ी पर मौक़ूफ़ कर दिया । सरकार कुतुबुल मदार मुख्तसर अरसा वहाँ कयाम पज़ीर रहे और तीनों शहज़ादों को हनराह लेकर आज़िमें सफ़र हुए मुख्तलिफ मुकामात पर तब्लीग़ व इशाअ़त फ़रमाते हुए लखनऊ में जलवा अफ़रोज़ हुए । मख़लूके खुदा को मुस्तफीज़ फरमाया उसी दौरान हज़रत मखदमू शाह मीना क़द्दस सिर्रहुलअज़ीज़ की विलादत हुर्इ । आप ने उनकी विलायत को ज़ाहिर फ़रमाया । मुख्तलिफ मुकामात का दौरा फरमाते हुए जौनपुर तशरीफ़ लाए । कुछ अरसा क़य़ाम के बाद फिर लखनऊ आये। लखनऊ में हज़रत क़ाज़ी शहाबुद्दीन परकाला आतिश की मारिफ़़त से हज़रत मख़दूम शाह मीना को अपनी जानमाज़ इनायत फरमार्इ और उनकी कुतबिय्यत का एलान फ़रमाया । 818 हि. में मकनपुर शरीफ में जलवा अफरोज़ हुए । जो उस वक़्त गैरआबाद एक जंगल था ।
निकाह:-
एक रोज़ हज़रत शेख़ अहमद ज़िन्दा शाह मदार रजि़. ने अपने ख़ुलफ़ा व मुरीदीन की मजलिस में इरशाद फ़रमाया कि मैने ख्वाजा मोहम्मद अरगून के निकाह और उन्हे इस ज़मीन पर मुस्तकिल आबाद करने का फैसला ले लिया है क्योंकि इसमें रब तबारक तआला की रज़ामन्दी है । तज़किरतन किसी ने यह बाद हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अरग़ून को बताार्इ तो आप ने इंकार फ़रमाया मगर सरकार मदारूल आलमीन को जब यह मालूम हुआ तो आप ने उन्हे तलब किया और इरशाद फ़रमाया - ऐ फ़रज़न्द ! तुम्हारा और तुम्हारे भाइयों का निकाह होना मशिय्यते ईज़दी है तुम से इजरा ए नस्ल होना है । इस लिए इन्कार न करना चाहिए । हजू़रे आला का हुक्म सुनकर आप ख़ामोश हो गए । हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद जमाल उद्दीन जानेमन जन्नती ने अर्ज़ किया कि क़स्बा जथरा (काल्पी) में हज़रत सय्यद अहमद खानदान हाशिमी के एक मुमताज़ शख्स हैं उनकी साहबज़ादी जन्नत बीबी से निकाह के लिए पैगाम पहुँचाया जाये । ग़रज़ कि पैगाम पहुँचाया गया तो हज़रत सय्यद अहमद जथरावी ने उसे ब सरो चश्म क़ुबूल कर लिया और यकुम रबीउल अव्वल 823 हि. को आपका निकाह हो गया ।
बाद में आप के दोनों छोटे भाइयों हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबु तुराब फ़न्सूर हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल हसन तैफूर रजि़. के निकाह भी हो गये ।
ख़िलाफ़त व जा नशीनी:-
आप को बैअ़त व ख़िलाफ़त का शरफ़ तो हुज़ूर मदारूल आलमीन से हासिल ही था । शेख मुरशिद की निगाह इन्तिख़ाब ने अपना जानशीन भी आपको मुक़र्रर फ़रमा लिया चुनांचे हुज़ूर मदार पाक ने एक दिन अपने करीब बुलाया और इरशाद फ़रमाया । ऐ फ़रज़न्द ! विलादत दो क़िस्म की होती है एक सुल्बी दूसरी रूहानी । सुल्बी तो मां बाप से तअल्लुक़ रखती है उस का तअल्लुक़ आलमे ख़ल्क़ से है जो कोर्इ आता है इस लिबासे ज़ाहिरी को पहने हुए आता है । एक न एक दिन इसको तर्क करना ही होगा । रूहानी विलादत मुरब्बिये रूह से मुतअलिक़ होती है उसका तअल्लुक़ आलमे अम्र से है जो मेरे और तुम्हारे मुतअल्लिक़ है यह क़यामत तक क़ायम रहेगा इस को फ़ना नहीं । मैने तुम को अपना जानशीन बनाया ज़ाहिरी तअल्लुक़ भी तुम्हारे साथ यह है कि तुम मेरे भार्इ की औलाद हो और भार्इ की औलाद भार्इ की तरफ़ मन्सूब हुआ करती है । चुनांचे क़ुरआन पाक में आया है (मफ़हूम -मैं ने इब्राहीम, इस्माईल और इस्ह़ाक़ व यअ़क़ूब की मिल्लत की पैरवी की - और ज़ाहिर है कि हुज़ूर सय्यिदे आलम स. का नसब हज़रत इस्मार्इल अलै. से मिलता है न कि हज़रत इसहाक़ अलै. से) मगर चूं कि हज़रत इसहाक़ अलै. हज़रत इस्माईल अलै. के भाई थे उनको भी बाप कहा गया । लिहाज़ा तुम भी मेरी औलाद हो और शरीअत व तरीक़त में मेरे जानशीन इसी तरह सरकार क़ुतबुल मदार रजि़. ने अपने विसाल से क़ब्ल तमाम ख़ुलफ़ा व मुरीदीन से इरशाद फ़रमाया कि सय्यद मोहम्मद अरगून को मैने अपना जानशीन किया और इन तीनों सय्यद मुहम्मद अरगून, सय्यद अबु तुराब फन्सूर, सय्यद अबुल हसन तैफ़ूर को बजाए मेरे यक्सां तसव्वुर करना और जो कोर्इ मुशकिल पेश आए तो इनकी तरफ़ रूजू करना बाक़ी मेरी रूह जिस तरह अब तुम लोगों की तरबियत बातिनी करती है इन्शा अल्लाह बाद विसाल भी इसी तरह करती रहेगी जो कोर्इ मुझ से इरादत रखता है मैने उसे क़ुबूल किया उस की सात नसलों तक क़ुबूल किया । और जो कोई मेरे इन फ़रज़न्दों से इरादत रखता है मैने उसे भी सात पुश्तों तक क़ुबूल किया।
ग़रज़ कि जब हुज़ूर मदारूल आलमीन का विसाल हो गया तो बादे विसाल आप की जानशीनी का मसअला दरपेश आया तो ताजुल आरिफ़ीन हज़रत ख़्वाजा सय्यद महमूद उद्दीन किन्तूरी सर गरोहे तालिबान, व ख़वाजा सै. जमाल उद्दीन जानेमन जन्नती सरगरोहे दीवानगान, काज़ी मुतह्हर क़ल्ला शेर सरगरोह आशिक़ान, हज़रत ख्वाजा सय्यद अबु तुराब फ़न्सूर हज़रत ख्वाजा सय्यद अबुल हसन तैफ़ूर व हज़रत मीर शम्स उद्दीन हसन अरब व हज़रत मीर रूक्न उद्दीन हसन अरब व दीगर ख़ुलफ़ा व मुरीदीन ने बिलइत्तिफ़ाक़ हज़रत क़ुतुबुल अक़ताब ख्वाजा सय्यद अबु मुहम्मद अरग़ून रजि़. को सरकार मदारूल आलमीन का जानशीन मुन्तख़ब कर लिया और नज़्रे इताअ़त पेश की ।
करामात:- आप की पुरी जि़न्दगी अल्लाह और उस के रसूल की इताअत, इबादत व रियाज़त मुजाहिदये नफ़्स व तसफ़ियाए क़ल्ब व रुश्दो हिदायत में गुज़री।
1. हालतॆ बेदारी और हालते नौम दोनों में यक्सां ज़िक्र में मसरूफ रहते ।
2. ज़िक्र के वक़्त आप के अज़ा से अजीब क़िस्म की आवाज़ पैदा होती थी ।
3. जब तिलावते क़ुरआन मजीद फ़रमाते तो लोग महव व मस्त हो जाते थे परिन्दे भी पास आकर जमा होने लगते थे और बेहोश हो जाते थे ।
4. आप की आवाज़ बहुत दिलकश थी इसी वजह से सय्यदना मदारूल आलमीन ने लक़ब अरग़ून से मुलक़्क़ब फ़रमाया । अरग़ून एक क़िस्म के नफ़ीस बाजे को कहते हैं
5. एक मर्तबा कुछ फ़ुक़रा आप की ख़िदमत में हाज़िर हुए चन्द दिनों मुक़ीम रह कर रुख़सत चाही तो बवक़्ते वापसी आपने एक फ़क़ीर की तरफ़ मुतवज्जेह होकर फ़रमाया कि तू कुफ़्र के अन्धेरें में कब तक रहेगा और दिल की सियाही कब धोएगा । इन फ़क़ीरों में रह कर भी तू अब तक मुसलमान न हो पाया यह सुनते ही वह जोगी जो बज़ाहिर मुसलमान फ़क़ीर बना हुआ था आप के क़दमों पर गिर गया और मुशर्रफ़ ब इस्लाम हो गया । आप ने उसका नाम अब्दुल्लाह रखा । अब्दुल्लाह ने साथियों को रूख़्सत कर दिया और ख़ुद हुज़ूर ख़्वाजा अरग़ून की ख़िदमते अक़दस में रह गया । सरकार ख़्वाजा सय्यद अबू मुहम्मद अरग़ून ने अपनी ख़ुसूसी तवज्जोह से उसे क़ारिये क़ुरआन और आरिफ़े मअ़रिफ़ते इलाही बना दिया और सिलसिलाए पाक की निस्बतों से मुस्तफीज़ फ़रमाकर इजाज़त व ख़िलाफ़त से भी सरफ़राज़ फ़रमाया ।
6. एक रोज़ आप तिलावत फ़रमा रहे थे कि उसी दौरान हज़रत शेख हामिद असफ़हानीआ गए। आपकी नज़र उन पर पड़ी तो वह फ़ौरन बेख़ुद हो गए । जब आप तिलावते क़ुरआने इलाही से फ़ारिग़ हुए तो अपने हाथ में उनका हाथ पकड़ा और फ़रमाया कहो क्या कैफ़ियत है । उन्होने आप के क़दमों में सर रख दिया फिर उन को ख़्वाजा मोहतरम ने सीने से लगाया । उन का जोश सुकून में बदल गया।
करामात तो आप की और भी हैं मगर इस मुख़्तसर में इतने ही पर इक्तिफ़ा करता हू़ँ
वफ़ात शरीफ:-
आप की वफ़ात 6 जुमादल आख़रह 891 हि. को हुर्इ । मज़ार मुकद्दस दरगाहे मुअल्ला हुज़ूर सय्यद बदी उद्दीन ज़िन्दा शाह मदार से मुत्तसिल है । मरजऐ ख़ास व आम और मुफ़ीज़े अनाम है।
औलाद अमजाद:-
हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल फ़ाइज़ मुहम्मद - हज़रत ख़्वाजा सय्यद महमूद - हज़रत ख़्वाजा सय्यद दाउद - हज़रत ख़्वाजा सय्यद इस्मार्इल - हज़रत सय्यद हामिद मुहामिद
ख़ुलफ़ाए बावकार:-
सुल्तानुल औलिया सरगिरोहे मदारिया हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल फाइज़ मुहम्मद सज्जादा नशीन, सुल्तानुल तारिकीन उमदतुल कामिलीन ख़्वाजा सै. महमूद सदर नशीन, - हज़रत शाह सय्यद हूसैन सरहिन्दी - हज़रत शेख सैफ़ उद्दीन - हज़रत ख़्वाजा सय्यद मोहम्मद - शेख़े कामिल हज़रत शाह वासिल - हज़रत शाह क़मर उद्दीन - हज़रत शेख़ कमाल उद्दीन बिन शेख़ सुलेमान मदारी - हज़रत शाह उबैद उल्लाह - हज़रत पीर ग़ुलाम अली शाह, हज़रत शैख़ अहमद रज़ियल्लाहु अन्हुम
आप तीन भाई थे जो तीन जिस्म और एक जान थे । इसी लिए हर सह ख़्वाजगान को कनफ़सिन वाहिदह के लक़ब से मुलक़्क़ब किया जाता है । इस लिए इनका तज़किरा जमील के बगैर ये ज़िक्र ना मुकम्मल रहेगा । इन्शा अल्लाहुल बदीअ़ आइन्दाह में दोनों नुफ़ूस कुद्सिया (हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबु तुराब फ़न्सूर व हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल हसन तैफूर रज़ि. ) का जि़क्र किया जायेगा ।
इन हर सह ख्वाजगान से जो सलासिले मुबारका जारी है उन्हें ख़ादिमान कहा जाता है।
खादिमान अरगूनी -
खादिमान फ़न्सूरी - ख़ादिमान तैफूरू - ख़ादिमाने अरग़ूनी से - नक़्द अरग़ूनी - अबुल फ़ायज़ी - दरबारी, महमूदी, इब्बनी, सरमोरी, सलोतरी -सिकन्दरी ग़ुलाम अलवी अहमदी सलासिल का इजरा हुआ
अज़कलम:-
मौलाना सय्यद मुनव्वर अली जाफ़री मदारी