कभी गुम्बद को देखेंगे कभी मीनार देखेंगे
यकीनन इक न इक दिन हम दरे सरकार देखेंगे
सरापा नूर हैं जो उनका जब दरबार देखेंगे
बरसते हर तरफ हम रहमतो अनवार देखेंगे
कहा यह मौत से आशिक ने सरकारे दो आलम के
चलो मर कर के मर्कद में जमाले यार देखेंगे
मुझे सरकार की शाने करीमी पर भरोसा है
मेरे हर गम मेरे हर दुख मेरे सरकार देखेंगे
मेरे हर लफ़्ज़ में इश्के रसूले पाक पिन्हा है
सुनेंगे वह मेरी नातें मेरे अशआर देखेगे
फरिश्ते फख्र करते हैं परे परवाज़ पर जिनकी
शबे मेराज वह भी आपकी रफ्तार देखेगे
कभी भी राहे हस्ती से नहीं भटकेंगे वह जो की
तेरी गुफ्तार देखेंगे तेरा किरदार देखेंगे
जिन्होंने रू ए अनवर आपका देखा हो आँखों से
शजर क्यों कर भला वह मिस्र का बाज़ार देखेंगे