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कोई नहीं अपना है हमदम रहमते आलम रहमते आलम

 कोई नहीं अपना है हमदम रहमते आलम रहमते आलम

लब पे यही रहता है हरदम रहमते आलम रहमते आलम


चैन आ जाएगा बिसमिल को जुल्मत दूर करो इस दिल को

नूर से भर दो नूरे मुजस्म रहमते आलम रहमते आलम


बागे नबुव्वत की कलियों में मेरे आका सब नबियों में

आप मोअख्खर आप मुकददम रहमते आलम रहमते आलम


लेके सहीफा साथ है आई आपकी जिस दम जात है आई

कुफ्र हुआ उस रोज है बेदम रहमते आलम रहमते आलम


हमको जन्नत दिलवाएगा रोजे महशर काम आएगा

आपका दामन आपका परचम रहमते आलम रहमते आलम


खजरा का दीदार करा दो शहरे मदीना हमको दिखा दो

दिल है पशेमा आँख है पुरनम रहमते आलम रहमते आलम

मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए

 मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए

तो फिर जुल्मतों के कदम थरथराए


मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए

बड़ा खौफ था हम थे जुल्मत की जद में

अंधेरा बहुत था हमारी लहद में

वो आए तो अन्वार भी साथ लाए


मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए


खुदा को नहीं जानती थी ये दुनिया

बुतों को खुदा मानती थी ये दुनिया

खुदा तक पहुँचने के रस्ते दिखाए


मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए


था बूजेहल कोई तो कोई था उत्बा

कोई बुलहब और कोई था शैबा

उन्हीं ने हैं फारुकों उस्माँ बनाए


मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए


थी छाई खिजाँ दीन के गुलसिताँ पर

तराने न ये बुलबुलों की जुबाँ पर

शजर चिटखी कलियाँ ये गुल मुस्कुराए


मोहम्मद जो आए मोहम्मद जो आए

मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद

 मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद मोईना मोहम्मद

अमीना मोहम्मद बसीना मोहम्मद नबीना मोहम्मद वलीना मोहम्मद

सखीना मोहम्मद बसीना मोहम्मद सफीना मोहम्मद मोईना मोहम्मद


मुनव्वर मुनव्वर है सीना मोहम्मद मोअत्तर मोअत्तर पसीना मोहम्मद

वियाबाँ बियाबाँ है रहबर मोहम्मद समन्दर समन्दर सफीना मोहम्मद


जिसे छू के है झूमती डाली हाली तेरे शहर की वो हवा बेमिसाली

तेरा सब्ज शुभबद तेरी नूरी जाली मुझे देखना है मदीना मोहम्मद


जहाँ ने सितम ढाए हैं सरवरे दीं तेरे दर पे हम आए है सस्वरे दीं

हमें भीख दे दे तेरे पास तो है दो आलम का सारा खजीना मोहम्मद


चमकने लगा तब से मेरा सुकददर समाया है जब से मदीने का मन्जर

मुनव्वर मुनव्वर हुई मेरी आखें मुजल्ला हुआ मेरा सीना मोहम्मद


वो फारुके आज़म वो सिद्दीके अकबर वो उस्मानों हैदर वो सलमानों बूजर

फलक के हैं तारे सहाबा तुम्हारे मिला इनसे जन्नत का जीना मोहम्मद


हमारे मुआविन हमारे हैं सरवर अली फात्मा और शब्बीरो शब्बर

हमें मौजे तूफाँ का खतरा हो क्यूँ कर तेरी आल जब है सफीना मोहम्मद


वो करबल की धरती वो खूँ रेज मन्जर वो मजरूह अकबर वो नन्हा सा असगर

जो तेरे घराने का सुनता हूँ किस्सा मेरा गम से फटता है सीना मोहम्मद


नहीं मौत का खौफ मुझको शजर है मेरे लब पे जिक्रे शहे बहरोबर है

तेरे नाम पर मेरा मरना मोहम्मद तेरे नाम पर मेरा जीना मोहम्मद

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

 मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


शाफए यौने दीं दाफए हर बला

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

मुश्किलों में हमारा है बस आसरा

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


जब तपिश रोजे महशर की झुलसाएगी

अल अमाँ अल अमाँ की सदा आएगी

साइबाँ तब बनेगी तुम्हारी रिदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


गुजरे ऐसे भी उश्शाके खैरुल बशर

रुबरुए अदू हो के सीना सिपर

तीर खाते रहे इश्क कहता रहा


मुस्तफा गुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


इखतियारात हैं ये नबी के लिये

देखिये तो नमाजे अली के लिये

इक इशारे पे सूरज को पलटा दिया


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


फर्श पर हों या सिदरा के मेहमान हों

वो नमाज़ें हों या हज के अरकान हों

रब को महबूब है आपकी हर अदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


जब जलाले खुदा सबको लरजाएगा

अप ही का करम सबके काम आएगा

आखिरत में जहन्नम से लोगे बचा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


सामने आपका नूरी दरबार हो

झनझनाता मेरे दिल का हर तार हो

वालेहाना मेरे लब पे हो ये सदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

उनकी आमद की नूरानी शब है सुब्हे नौ मुस्कुराने लगी है

 उनकी आमद की नूरानी शब है सुब्हे नौ मुस्कुराने लगी है

मोमिनों आओ खुशियाँ मनाएँ जाते सरकार आने लगी है


कुफ्र के छाए बादल थे हर सू और न था शिर्को बिदअत पे काबू

रहमते हक बरसने लगी जब लहलहाने लगे तेरे गेसू

अय शहे जुज़्ज़ो कुल दीं की खेती तुझसे ही लहलहाने लगी है


बे बहा हमको दौलत मिली है यानी उनकी मोहब्बत मिली

जिसको उनकी मोहब्बत मिली है उसको हर दुख से राहत मिली ह

जो गदा उनका है उसकी किस्मत बाखुदा जगमगाने लगी है


सुन के जलिम ये थर्रा गये हैं वो हबीबे खुदा आ गये है

और मज़्लूम खुश हैं वो देखो रहमते दोसरा आ गये हैं।

झूम उठी है फजा और सबा भी गीत आमद के गाने लगी है

तू तो है राहते कुल्बों सीना अय शहब्शाहे अर्जे मदीना

जिसको चौखट तेरी मिल गई है मिल गया उसको जन्नत का जीना

खौफ क्या उसको हो तेरे दर पर जिसकी मिटटी ठिकाने लगी है


अय जिगर गोश ए आमिना बी सुन लो फरियाद इस मुल्तजी की

बहरे गम के भँवर में फंसा है डूब जाए ना सरकार कश्ती

आओ आका मदद को शजर की इसको दुनियाँ सताने लगी है

अल्लाहू अल्लाह अल्लाहू अल्लाह अल्लाहू

 अल्लाहू अल्लाह अल्लाहू अल्लाह अल्लाहू

तेरी सना कुर्जा अय अब्दे रहाँ अय सबके आका


हस्बी रब्बी जल्लल्लाह माफी कल्बी गैरल्लाह

नूर मोहम्मद सल्लल्लाहअल्लाहू अल्लाह


हश्र के दिन सबने लाख किये सजदे

रब न हुआ राज़ी काम नही आए

देख के सब हैराँ बख़शिश का सामाँ आपका इक सजदा


अल्लाहू अल्लाह


चाँद से भी रौशन चेहरा पाया है

आपको खालिक ने ऐसा बनाया है

मुशरिक आते हैं ईमाँ लाते हैं देखके बस चेहरा


अल्लाहू अल्लाह


अर्श के हो तारे शम्सो हैराल्ड द हो तुम

नूर सरापा हो या के बशर हो तुम

फिक्र हिरासा है अक्ले हैराँ है क्या हो तुम अय आका


अल्लाहू अल्लाह


तेरा खुदा आला तू भी नबी अफज़ल

तेरे कदम अशरफ तेरी ज़मी अफज़ल

तू कैसा होगा जब शहरे तैबा अर्श का है टुकड़ा


अल्लाहू अल्लाह


अय इब्ने हैदर आपकी कुरबानी

क्यूँ न बने दुनियाँ आपकी दीवानी

अय मेरे आका आपका है सदका आलम है कहता


अल्लाहू अल्लाह


बोला फरिश्ता हम साथ न जाएगें

हम जो बढ़े आगे पर जल जाएगें

तुम होे हबीबे रब रब ने बुलाया है आज तुम्हें तन्हा


अल्लाहू अल्लाह


सारी ज़मीं देखी सारे जमाँ देखे

देखने वालों ने दोनों जहाँ देखे

हर एक को देखा कोई नहीं पाया आप सा अय आका


अल्लाहू अल्लाह


पथरीली धरती और इन्सों हैवाँ

पत्थर के बुत थे पत्थर दिल इन्साँ

वो जो शजर आया उसने ही पढ़वाया पत्थर से कल्मा


अल्लाहू अल्लाह

आ गये आगये आ गये आ गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये

 आ गये आगये आ गये आ गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये

परचमें अम्न आलम में लहरा गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये


नारे दोजख से हमको बचाऐगें वो हश्र के रोज जन्नत दिलाऐगे वो

कोई आफत जो सर पर कभी आएगी रहमतो की घटा बनके छाऐंगे वो

उम्मती आज फज़्ले खुदा पा गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये


झूमती धरती है झूमता है गगन आज बिखरी है खुशबू चमन दर चमन

जब अरब के घुघलके से फूटी किरन जगमगाने लगी अन्जुमन अन्जुमन

जो अंधेरे में थे रोशनी पा गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये


हर तरफ बारिशे नूर होने लगी तीरगी शिर्क की दूर होने लगी

जो जमीं कुफ्रो इल्हाद में चूर थी अब मसर्रत से मामूर होने लगी

उनके गेसू फजाओं में लहरा गये, आ गये आ गये मुस्तफा आ गये


मेहरबां खल्क पर हक़ तआला हुआ चेहरा जुल्मो तशदुद का काला हुआ

आप आए जहां ए में उजाला हुआ, दीन का हर तरफ बोल बाला हुआ

आप आए दुश्मने दीने इस्लाम थर्रा गए, आ गये गये मुस्तफा आ गये


नूह को उनके सदके किनारा मिला, हुस्ने यूसुफ को हुस्ने नज़ारा मिला

रंग लाई दोआए खलीली शजर, खल्क को अरश आज़म का तारा मिला

अम्बियाओ रुसुल मुददआ पा गये आ गये आ गये मुस्तफा आ गये

मुझको अम्बर न खजीना न दफीना दे दे

 मुझको अम्बर न खजीना न दफीना दे दे

मेरे रब खुशबूए गुलज़ारे मदीना दे दे


मेरी नस्लों को महकने के लिये अय मालिक

एक कतरा मेरे आका का पसीना दे दे


पार होना है गुनाहों के समन्दर से मुझे

पन्जतन पाक का अल्लाह सफीना दे दे


जिसमें सौदा हो तेरे इश्क का वो सर दे दे

जिसमें तस्वीर हो ख़ज़्री की वो सीना दे दे


आने वाले हैं वो वश्शम्स की तफ्सीर है जो

दीद का कब्र में अल्लाह करीना दे दे


सुर्खरु हो के पहोंचना है बरोजे महशर

मुँह पे मलने के लिये खाके मदीना दे दे


अय खुदा इल्म अली को जो दिया था तूने

बस शजर को भी वही सीना ब सीना दे दे

हर लब पे तराना है रसूले अरबी का

 हर लब पे तराना है रसूले अरबी का

हर दिल में ठिकाना है रसूले अरबी का


आदम का ज़माना हो के ईसा का ज़माना

हर एक जमाना है रसूले अरबी का


सब कुछ जो लुटा देता है इस्लाम के खातिर

वो सिर्फ घराना है रसूले अरबी का


घटता ही नहीं बँटता ही रहता है बराबर

क्या खूब रुज़ाना है रसूले अरबी का


तुम मान लो इसको तो है दानाई इसी में

हर खेत का दाना है रसूले अरबी का


हर बात निराली है रसूले अरबी की

अन्दाज यगाना है रसूले अरबी का


है ईद का दिन क्यूँ न हों हर सिम्त बहारें

शब्बीर हैं शाना है रसूले अरबी का

हस्वी रब्बी जल्लल्लाह माफी कल्बी गैरुल्लाह

 हस्वी रब्बी जल्लल्लाह माफी कल्बी गैरुल्लाह

नूर मोहम्मद सल्लल्लाह ला इलाहा इल्लल्लाह


तेरे सदके में आका सारे जहाँ को दीन मिला

बेदीनों ने कलमा पढ़ा ला इलाहा इल्लल्लाह


सिम्ते नबी बुजेहल गया आका से उसने ये कहा

गर हो नबी बतलाओ जरा मेरी मुटठी में है क्या

आका का फरमान हुआ और फज़्ले रहमान हुआ

मुठ्ठी से पत्थर बोला ला इलाहा इल्लल्लाह


अपनी बहन से बोले उमर ये तो बता क्या करती थी

मेरे आने से पहले क्या चुपके चुपके पढ़ती थी

बहन ने जब कुर्जान पढ़ा सुनके कलामे पाके खुदा

दिल ये उमर का बोल उठा ला इलाहा इल्लल्लाह


वो जो बिलाले हब्शी है सरवरे दी का प्यारा है

दुनियाँ के हर आशिक की आखों का वो तारा है

जुल्म हुए कितने उस पर सीने पर रक्खा पत्थर

लब पर फिर भी जारी था ला इलाहा इल्लल्लाह


दुनियाँ के इन्सान सभी शिर्को बिदअत करते थे

जो रब के ये बन्दे वो बुत की इबादत करते थे

बुत खाने है थर्राए मेरे नबी हैं जब आए

कहने लगी मख्लूके खुदा ला इलाहा इल्लल्लाह


गुलशन कल्मा पढ़ते है चिड़िया कल्मा पढ़ती है

दुनिया की मखलूक सभी जिक्र खुदा का करती है

कहते सभी हैं जिन्नो बशर कहता शजर है कहता हजर

कहता है पत्ता पत्ता ला इलाहा इल्लल्लाह

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