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लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई हैं फिज़ाएं मुअत्तर मुअत्तर हुईं जुल्फे वल्लैल जिस दम है लहरा गई हश्र के रोज पास अपने कुछ भी न था नेमते गदहे खैरुल वरा के सिवा बढ़ के रहमत ...

 आए जो कभी तूफान जब मुश्किल में हो जान हुजूर आ जाएंगे जिन पर है यह जाँ कुरबान वह नबियों के सुल्तान हुजूर आ जाएंगे जब आफ्त कोई आएगी तसकीन दिलाने आएंगे ईमान है कामिल यह अपना सरकार बचाने आएंगे हम सब...

 इश्के नबी का आँख में भर के तू नूरी काजल चल मदीने चल चल मदीने चल दर पे पहुंच के प्यारे नबी के तुम बा चश्मे नम कहना उस दरबारे आली में इक रोज तो पहुंचे हम कहना उनसे कहना हमको बुला लें आज नहीं तो कल...

 काश उनके गुम्बदो मीनार के साए तले नात लिक्खूं रौजा ए सरकार के साए तले इल्मे हक की रोशनी सारे जहां में छा गई सूरए इक्रा जो आई गार के साए तले अर्श है कुर्सी कलम है जन्नतुल फिरदौस है गुम्बदे खिजरा ...

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