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زمیں مداری ہے یہ آسماں مداری ہے

 ज़मीं मदारी है यह आसमाँ मदारी है

मदार सब के हैं सारा जहाँ मदारी है


लगी हुई है जो एक भीड़ गर्दे पेशे मज़ार

यह सारी बिखरी हुई कहकशाँ मदारी है


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है लफ्ज़ लफ्ज़ में इनके जमाल की खुशबू

किताबे ज़ीस्त की हर दास्ताँ मदारी है


हर एक मज़हबो मिल्लत पे इनका है एहसाँ

हर एक साक़िने हिन्दोस्ताँ मदारी है


चराग़ दीने मुहम्मद उधर हुऐ रौशन

गुज़र जिधर से गया कारबाँ मदारी है


मदार टीकरी अजमेर की यह कहती है

हमारे शहर का हर एक निशाँ मदारी है


कली भी खोल के लब दम मदार कहती है

यक़ीन आ गया हर गुलसिताँ मदारी है


मै सोज़ कैसे न क़िस्मत पे अपनी नाज़ करूँ

खुदा का शुक्र मेरा पासबाँ मदारी है
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