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طیبہ کی آرزو میں جئے جارہا ہوں میں

 

तैबा की आरज़ू में जिये जा रहा हूं मैं
जामे ग़मे फ़िराक़ पिये जा रहा हूं मैं

तैबा की हाज़री का शरफ़ मिल गया मुझे
हर फिक्र को सलाम किये जा रहा हूं मैं
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अब क़ब्र के अंधेरों की परवाह नहीं मुझे

इश्क़े नबी का नूर लिये जा रहा हूं मैं

तैबा की रह गुज़र है निगाहों के सामने
जज़्बे जुनूँ मे सज्दे किये जा रहा हूं मैं

ऐ सोज़ जिसमें खुशबू है इश्क़े रसूल की
ज़हनों को ऐसे लफ्ज़ दिये जा रहा हूं मैं

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