जब भी दिले रन्जूर ने दी है सदा या मुस्तफा
बरसी तुम्हारे फैज़ की मुझ पर घटा या मुस्तफा
होगा चमन हददे नज़र खुल जाएगा जन्नत का दर
महशर में जब देखेगें हम जल्वा तेरा या मुस्तफा
तुम नूर बनके आए जब दुनियाँ ने पहचाना है तब
वरना खुदा का नूर भी एक राज था या मुस्तफा
इम्दाद उसको मिल गई उसकी खिली दिल की कली
रंजो गमों आलाम में जिसने कहा या मुस्तफा
तू रब का ऐसा नूर है है माँद जिसके सामने
हर इक किरन हर एक चमक हर एक जिया या मुस्तफा
जो मुश्किलें आसाँ करे कल्बे हजी शादाँ करे
दुनियाँ में कोई भी नहीं तेरे सिवा या मुस्तफा
पत्थर बना रश्के गोहर फूला फला है वो शजर
तेरे वसीले से है की जिसने दोआ या मुस्तफा