बढ़ने दो गमें इश्के हुसैन और जियादा
पाने दो मेरे कल्ब को चैन और जियादा
याद आयेगा जब खून शहीदाने वफा का
तब अश्क बहायेंगे ये नैन और जियादा
दिखलाये जो शब्बीर ने शमशीर के जौहर
याद आये शहे बदरो हुनैन और जियादा
पाबन्दी गमें शह पे जो मुन्किर ने लगायी
उश्शाक हैं करने लगे बैन और जियादा
दिन भर के मज़ालिम के मनाजिर थे नजर में
जैनब के लिये बढ़ गयी रैन और जियादा
कटवायेंगे शब्बीर जो सर करबो बला में
इस्लाम की बढ़ जायेगी जैन और जियादा
अय काश शजर को मिले तौफीक खुदा से
करता ही रहे जिक्रे हुसैन और ज़ियादा