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मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

 मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


शाफए यौने दीं दाफए हर बला

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा

मुश्किलों में हमारा है बस आसरा

मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


जब तपिश रोजे महशर की झुलसाएगी

अल अमाँ अल अमाँ की सदा आएगी

साइबाँ तब बनेगी तुम्हारी रिदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


गुजरे ऐसे भी उश्शाके खैरुल बशर

रुबरुए अदू हो के सीना सिपर

तीर खाते रहे इश्क कहता रहा


मुस्तफा गुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


इखतियारात हैं ये नबी के लिये

देखिये तो नमाजे अली के लिये

इक इशारे पे सूरज को पलटा दिया


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


फर्श पर हों या सिदरा के मेहमान हों

वो नमाज़ें हों या हज के अरकान हों

रब को महबूब है आपकी हर अदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


जब जलाले खुदा सबको लरजाएगा

अप ही का करम सबके काम आएगा

आखिरत में जहन्नम से लोगे बचा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा


सामने आपका नूरी दरबार हो

झनझनाता मेरे दिल का हर तार हो

वालेहाना मेरे लब पे हो ये सदा


मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा मुस्तफा
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