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याद आयी करबला हम को तो हम रोने लगे

 याद आयी करबला हम को तो हम रोने लगे

एक हम क्या हूरो गिलमाने इरम रोने लगे


बाजुए अब्बास अकबर का गला आका का सर

लिखते लिखते खून का किस्सा कलम रोने लगे


फर्ते गम से जब अली अकबर को रोना आ गया

ऐसा लगता था नबी ए मोहतरम रोने लगे


जब सुनायी हमने उनको दास्ताने करबला

क्या है जिक्र इन्सां का पत्थर के सनम रोने लगे


पढ़के ख़त में हज़रते सुगरा की बीमारी का हाल

बादशाहे करबला बा चश्मे नम रोने लगे


करबला में सब उजड़ जायेगा जहरा का चमन

जब कहा जिब्रील ने शाहे उमम रोने लगे


जब अली का फूल असगर प्यास से बेकल हुआ

देख कर उसको गुलिस्ताने इरम रोने लगे


मरसिया लिखने जो बैठे करबला का हम शजर

सोच कर ढाये गये जुल्मो सितम रोने लगे
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