लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई

लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई
हैं फिज़ाएं मुअत्तर मुअत्तर हुईं जुल्फे वल्लैल जिस दम है लहरा गई

हश्र के रोज पास अपने कुछ भी न था नेमते गदहे खैरुल वरा के सिवा
बढ़ के रहमत ने आगोश में ले लिया नाते सरकार महशर में काम आ गई

रेत पर जलवा फरमा थे बदुरुद्दुजा आपके गिर्द झुर्मुट था असहाब का
रात दिन की तरह जगमगाने लगी चाँदनी उनके तलवों से शरमा गई

संग्रेजों ने मुट्ठी में कलमा पढ़ा और तेरी उंगलियों से है चश्मा बहा
डूबा सूरज उगा चाँद टुकड़े हुआ तेरी खुश्बू दो आलम को महका गई

आ गए इस जहां में हैं जाने जहां अब गुजर होगा तेरा न फसले खिजां
फूल मुस्का दिए चिटख़ी हर इक कली और गुलिस्ताँ में फसले बहार आ गई

किस कदर फज़्ल है तुझपे अल्लाह का हर कोई मस्त है अर्जे तैबा तेरा
हूक उ‌ठठी शजर दिल तड़‌पने लगा ऐ मदीना तेरी जब भी याद आ गई
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