दिल ज़ख़्मी परिन्दे की तरह डोल रहा है,
दरबारें नबी के लिये पर तोल रहा है।
सरकार का हो नाम लिखा जिसकी जबीं पर,
पत्थर वही हर दौर में अनमोल रहा है।
उस दौरे जेहालत में गुलामे शहे वाला,
अस्रारे मशीयत की गिरह खोल रहा है।
खालिक ने किये जिस के लिये ख़ल्क दो आलम,
तू अपनी तराजू में उसे तौल रहा है।
हर चन्द के मुट्ठी में है बू जेहल के पत्थर,
आका के इशारे पे मगर बोल रहा है।
हम सुन्नी मुसलमानों का परवानों के मानिन्द,
सरकार पे मर मिटने का माहौल रहा है।
नाते शहे कौनेन के अश्आर सुना कर,
अमृत सा फज़ाओं में कोई घोल रहा है।
जिस हाथ की निस्बत नहीं दामाने नबी से,
उस हाथ में महज़र सदा कश्कोल रहा है।
دل زخمی پرندے کی طرح ڈول رہا ہے،
دربارِ نبی کے لئے پر تول رہا ہے۔
سرکار کا ہو نام لکھا جس کی جبیں پر،
پتھر وہی ہر دور میں انمول رہا ہے۔
اس دورِ جہالت میں غلامِ شہِ والا،
اسرارِ مشیت کی گرہ کھول رہا ہے۔
خالق نے کئے جس کے لئے خلق دو عالم،
تو اپنی ترازو میں اسے تول رہا ہے۔
ہر چند کے مُٹھی میں ہے بو جَہل کے پتھر،
آقا کے اشارے پہ مگر بول رہا ہے۔
ہم سُنّی مسلمانوں کا پروانوں کے مانند،
سرکار پہ مر مٹنے کا ماحول رہا ہے۔
نعتِ شہِ کونین کے اشعار سُنا کر،
امرِت سا فضاؤں میں کوئی گھول رہا ہے۔
جس ہاتھ کی نسبت نہیں دامانِ نبی سے،
اس ہاتھ میں محضَر سدا کشکول رہا ہے۔


