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زمیں مداری ہے یہ آسماں مداری ہے

 ज़मीं मदारी है यह आसमाँ मदारी है

मदार सब के हैं सारा जहाँ मदारी है


लगी हुई है जो एक भीड़ गर्दे पेशे मज़ार

यह सारी बिखरी हुई कहकशाँ मदारी है


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है लफ्ज़ लफ्ज़ में इनके जमाल की खुशबू

किताबे ज़ीस्त की हर दास्ताँ मदारी है


हर एक मज़हबो मिल्लत पे इनका है एहसाँ

हर एक साक़िने हिन्दोस्ताँ मदारी है


चराग़ दीने मुहम्मद उधर हुऐ रौशन

गुज़र जिधर से गया कारबाँ मदारी है


मदार टीकरी अजमेर की यह कहती है

हमारे शहर का हर एक निशाँ मदारी है

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کن کرم بہر خدا سید بدیع الدیں مدار

कसीदा शरीफ

हज़रत अब्दुर्रज़्ज़ाक क़ादरी बांसवी अलैर्हिरहमा.. बांसा शरीफ, बारहबंकी, यूपी (1048 ही.-1136 ही.) शहज़ादा-ऐ-गौसे आज़म ने 1120 ही.में दरबारे मदारुल आलमीन मे ये कसीदा पेश किया ।।


ऐ जिगर गौशे मुहम्मद ऐ हबीबे किर्दगार,

 ऐ गुले गुलज़ार हैदर चूँ अमीरे शह सवार,

ऐ चिराग़े दिने अहमद हम शबिस्ताने बहार,

आशिके मकसुदे मुतलक मेहरमे परवरदिगार,

कुन करम बहरे खुदा सय्यद बदिउद्दीन मदार ।।


कुर्रतुल ऐने मुहम्मद ऐ जिगर गौशे अली,

यक नज़र फरमा बराये मुस्तफा खैरुन नबी,

रौनक ऐ बागे विलायत मेहरेमे राजे खफी,

ऐ अमीरे ताज ऐ अनवर फैजे बख्शे मअनवी,

कुन करम बहरे ख़ुदा सय्यद बदिउद्दीन मदार ।।

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ہم ہیں مدار والے ہم ہیں مدار والے


 ہم ہیں مدار والے ہم ہیں مدار والے

نانا نبی ہمارے دادا علی ہمارے

حسنین و فاطمہ کے ہم ہیں جگر کے پارے

عظمت کے ہیں ہماری قرآن میں حوالے

ہم سے الجھنا کوئی آساں نہیں ہے لوگوں

ہمت اگر ہے تم میں پھر چھیڑکے تو دیکھو

ہوجائیں گے یقینا خود منھ تمہارے کالے

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وہ شیخ عبد حق ہوں یا کہ ہوں الف ثانی

قطب المدار ہو تم سب نے یہ بات مانی

تجھ سے ہی آئی آقا ہے دین پر جوانی

دیکھے تو کوئی جاکر تفسیر میں حوالے

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ہر ایک ہے شیدائی ہر ایک ہے دیوانہ


 हर एक है शैदायी हर एक है दीवाना
 सरकार का ऐसा है अन्दाज करीमाना 

मैंखार हैं छलकाते मै इश्के रिसालत की
 है रश्के मै कौसर सरकार का मैखाना 

बेकार है आकाई मेरे लिये ऐ आका 
हस्ती जो मेरी गुजरे इस दर पे गुलामाना

अब अपनी मुहब्बत से लिल्लाह इसे भर दो
अय कुत्बे जहां शायद खाली है यह पैमाना

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