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वजहे शक्कुल कमर फख्रे जिन्नो बशर ऐ शहे कुन फकां तुम कहां हम कहां

 वजहे शक्कुल कमर फख्रे जिन्नो बशर ऐ शहे कुन फकां तुम कहां हम कहां

हम है मुहताज और तुम हो मुख्तारे कुल मोनिसे वे कसां तुम कहां हम कहां


तुम शफी और हम सब गुनहगार हैं तुम हो मतलूब और हम तलबगार है

तुम तो साकी हो कौसर के हम तिश्ना लब शाफए आसियां तुम कहां हम कहां


हम तो खाकी हैं तुम नूर ही नूर हो दोनों आलम में हर सिम्त मशहूर हो

आसमानी किताबों में मजकूर हो नाजिशे जाकिरां तुम कहां हम कहां


रब ने हम को यह कहके कुलू वशरबू है बनाया जमीनो जमां के लिए

और बनाए खुदा ने तुम्हारे लिए यह जमीनो जमां तुम कहां हम कहां


तुम ही तो सारे आलम के मखदूम हो हर बशर क्यूं तुम्हारा न महकूम हो

हम सरापा खता तुम तो मासूम हो फख़्रे पैगम्बरां तुम कहां हम कहां


अर्श हो फर्श हो या तहतुस सरा राज आलम का कोई न तुमसे छुपा

और हमारी है आँखों पे परदा पड़ा राज़ के राजदां तुम कहां हम कहां


हम जो चाहें मिले बे जुबां को जुबां ऐसा बल्लाह बिल्कुल भी मुमकिन नहीं

तुम जो चाहो तो पल भर में मिल जाती है पत्थरों को जुबां तुम कहां हम कहाँ


मेरे सरकार तुम तो हो हय्युन्नबी और हम खाक हो जाने वाले सभी

जाने तखलीक वल्लाह मक़ख़लूक के तुम हो रूहे रवां तुम कहां हम कहां

लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई

लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई
हैं फिज़ाएं मुअत्तर मुअत्तर हुईं जुल्फे वल्लैल जिस दम है लहरा गई

हश्र के रोज पास अपने कुछ भी न था नेमते गदहे खैरुल वरा के सिवा
बढ़ के रहमत ने आगोश में ले लिया नाते सरकार महशर में काम आ गई

रेत पर जलवा फरमा थे बदुरुद्दुजा आपके गिर्द झुर्मुट था असहाब का
रात दिन की तरह जगमगाने लगी चाँदनी उनके तलवों से शरमा गई

संग्रेजों ने मुट्ठी में कलमा पढ़ा और तेरी उंगलियों से है चश्मा बहा
डूबा सूरज उगा चाँद टुकड़े हुआ तेरी खुश्बू दो आलम को महका गई

आ गए इस जहां में हैं जाने जहां अब गुजर होगा तेरा न फसले खिजां
फूल मुस्का दिए चिटख़ी हर इक कली और गुलिस्ताँ में फसले बहार आ गई

किस कदर फज़्ल है तुझपे अल्लाह का हर कोई मस्त है अर्जे तैबा तेरा
हूक उ‌ठठी शजर दिल तड़‌पने लगा ऐ मदीना तेरी जब भी याद आ गई
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हुजूर आ जाएंगे

 आए जो कभी तूफान जब मुश्किल में हो जान हुजूर आ जाएंगे

जिन पर है यह जाँ कुरबान वह नबियों के सुल्तान


हुजूर आ जाएंगे


जब आफ्त कोई आएगी तसकीन दिलाने आएंगे

ईमान है कामिल यह अपना सरकार बचाने आएंगे

हम सबका है ईमान होगा फज़ले रहमान


हुजूर आ जाएंगे


जब पत्थर रब बन जाएंगे जब जुल्म के शोले बरसेंगे

जब शाही होगी बातिल की हक्दार कभी जब तरसेंगे

गमगीं होगा शैतान जब ले कर के कुरआन


हुजूर आ जाएंगे


वह आज भी जिन्दा है मुन्किर हर वक़्त करम फरमाते हैं

मीलाद मनाते हैं जब हम सरकारे मदीना आते हैं

मुर्दा न समझना तू इस वक़्त के ऐ मरवान


हुजूर आ जाएंगे


सस्कारे मदीना के खातिर हम आस लगाए बैठे हैं

मुश्ताके जियारत हम घर पर उम्मीद सजाए बैठे हैं

दिल में है एक तूफान आहट पे धरे हैं कान


हुजूर आ जाएंगे


माहौले क्यामत जब लोगो उम्मत को खौफ दिलाएगा

सर तक होगा पानी तो कभी सूरज सर पर आ जाएगा

तब उम्मत के बन कर वह बख़शिश के सामान


हुजूर आ जाएंगे


डरना न मुसीबत से गम से तकलीफ से तुम मत घबरान

इस तरह तसल्ली दे देना दिल को यही कह के बहलाना

दुनिया की मुसीबत से होना न शजर हैरान


हुजूर आ जाएंगे

चल मदीने चल चल मदीने चल

 इश्के नबी का आँख में भर के तू नूरी काजल

चल मदीने चल चल मदीने चल


दर पे पहुंच के प्यारे नबी के तुम बा चश्मे नम कहना

उस दरबारे आली में इक रोज तो पहुंचे हम कहना

उनसे कहना हमको बुला लें आज नहीं तो कल


चल मदीने चल चल मदीने चल


उनकी जियारत को जब कोई शख्स मदीने जाता है

आँख मेरी भर आती है और हिज्र में दिल घबराता है

हिज्रे नबी में भर जाती है आँखों की छागल


चल मदीने चल चल मदीने चले


शाफऐ महशर मालिके कौसर शाहे उमम का दर देखो

जाओ जाकर नूरे मुजस्सम दाफए गम का दर देखो

उनके दर पे मिल जाता है हर मुश्किल का हल


चल मदीने चल चल मदीने चल


जन्नत की हरयाली है या उनका गुम्बदे खिज़रा है

रश्के जिनां वह धरती है जिस जा पर उनका रौजा है

और मिनारे खिजरा है या नूर की इक मशअल


चल मदीने चल चल मदीने चल


काश मेरा ब फ़ज़्ल करे ऐ काश में ऐसा हो जाऊं

जैसी है वे जिस्म हवा अल्लाह मैं वैसा हो जाऊं

उड़ के मदीने जाऊं जैसे जाता है बादल


चल मदीने चल चल मदीने चल

काश उनके गुम्बदो मीनार के साए तले

 काश उनके गुम्बदो मीनार के साए तले

नात लिक्खूं रौजा ए सरकार के साए तले


इल्मे हक की रोशनी सारे जहां में छा गई

सूरए इक्रा जो आई गार के साए तले


अर्श है कुर्सी कलम है जन्नतुल फिरदौस है

गुम्बदे खिजरा तेरे मीनार के साए तले


दीं के खातिर मेरे आका के सहाबा जी गए

तीर के साए तले तलवार के साए तले


फिस्क के सूरज की गर्मी से न झुलसा दीने हक

बढ़ गया शब्बीर के ईसार के साए तले


पांव की जंजीरों की कड़ियां हमें बतलाती हैं

सिलसिले हैं आबिदे बीमार के साए तले


खिल रहे हैं आपके सदके में खुशियों के चमन

मेरे आका आपके ईसार के साए तले


ऐ शजर हस्सान का सदका तुझे भी मिल गया

खुल्द पहुंचा नातिया अशआर के साए तले

ویلکم ویلکم یارسول اللہ welcome welcome Ya Rasullah

Welcome Welcome Ya Rasulallah
हूरों ने कहा गिल्मा ने कहा
सब बोले मलक इन्साँ ने कहा
करते इस्तक़बाल हैं हम या रसूलल्लाह
Wellcome welcome

welcome welcome ya rasulallah
home of abdullah is lighting singing everydy
swinging swinging every reverb happy happy see
daayi halima talling cum cum ya rasullah
welcome welcome
welcome welcome ya rasullah

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