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अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा

 ऐ खुदा के पाक महमां अलविदा

अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा


तुझमें ही नाजिल हुआ कुरआन है

चन्द ही दिन का अब तू महमान है

कर रहे है जिन्न व इन्सां अलविदा


अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा


खुलते हैं इस माह में जन्नत के दर

बन्द हो जाते हैं अबवाबे सकर

कैद हो जाता है शैतां अलविदा


अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा


रब करम फरमाता है इस माह में

रिज्क भी बढ़ जाता है इस माह में

मुश्किलें होती हैं आसाँ अलविदा


अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा


हिज्र से है गमजदा हर रोजा दार

छोड़ कर जाती है अब फसले बहार

गमजदा है हर गुलिस्तां अलविदा


अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा


दूर करके हम को हर आजार से

मगफिरत से रहमतो अनवार से

जा रहा है भर के दामां अलविदा


अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा

ऐ शहे आली मकाम अस्सलातु वस्सलाम

 ऐ शहे आली मकाम अस्सलातु वस्सलाम

ऐ शहीदों के इमाम अस्सलातु वस्सलाम


आपकी ताजीम कुरआँ ने हमें सिखलाई है

काबिले सद एहतेराम अस्सलातु वस्सलाम


वाह बातिल के न हार्यों में दिया है तू ने हाथ

जान दे दी हक के नाम अस्सलातु वस्सलाम


आप पर रो रो के भेजा याद आई जिस घड़ी

कर्बला की हमको शाम अस्सलातु वस्सलाम


ऐ शहीदे कर्बला इनके भी दामन को भरो

कह रहे हैं यह गुलाम अस्सलातु वस्सलाम


इस जहां में ही नहीं महशर के दिन भी बोलेंगे

पी के सब कौसर का जाम अस्सलातु वस्सलाम


भेजते हैं दोस्त क्या दुश्मन भी अत तहिय्यात में

आले पैगम्बर के नाम अस्सलातु वस्सलाम


फख्र है कि दीँ के खातिर तीर खाकर हो गए

हज़रते असगर तमाम अस्सलातु वस्सलाम


कर्बला ही क्या जमी के जुर्रे जर्रे आप पर

भेजते हैं सुब्हो शाम अस्सलातु वस्सलाम


जब पढ़ी दिल से है जिसने दास्ताने कर्बला

बोल उठे सब खासो आम अस्सलातु वस्सलाम


हजरते सुगरा, सकीना, जैनबो उम्मे रुबाब

इतरते खैरुल अनाम अस्सलातु वस्सलाम


हज़रते सुगरा का सारा घर चला है कर्बला

कह रहे हैं दर व बाम अस्सलातु वस्सलाम


है शजर की इल्तजा देखे यह जाकर के कभी

कर्बला की सुब्हो शाम अस्सलातु वस्सलाम

जैनब ने दुखड़ा जो सुनाया है हाय यज़दी लश्कर आया

 जैनब ने दुखड़ा जो सुनाया है हाय यज़दी लश्कर आया

दिल है सकीना का थर्राया हाय यज़दी लश्कर आया


शर्म से सूरज भी छुपता है सर से छिनी जैनब की रिदा है

बालों से चेहरा है छुपाया हाय यज़दी लश्कर आया


तुझको सुकूँ मिल पाया न पल भर हाय सकीना बादे अकबर

जैसे उठा बाबा का साया हाय यज़दी लश्कर आया


बालियाँ छीनी छीनी रिदायें टूट पड़ी यह कैसी बलाऐं

ख़ैमों को आकर है जलाया हाय यज़दी लश्कर आया


प्यास से बेकल वाली सकीना किसका रस्ता देख रही हो

पानी लेकर कोई ना आया हाय यज़दी लश्कर आया


आबिदे मुज़तर की गर्दन को शिम्र की नजरें घूर रही हैं

खतरे में है ज़हरा का जाया हाय यज़दी लश्कर आया


आया कहां लेकर है मुकद्दर किसको पुकारे आले पयम्बर

तंग है धरती देस पराया हाय यज़दी लश्कर आया


असगर अकबर ऑनो मोहम्मद कासिम और अब्बास दिलावर

शह ने शजर दरबार लुटाया हाय यज़दी लश्कर आया

है दर्द के मारे दरिया के किनारे

 है दर्द के मारे दरिया के किनारे

जहरा के दुलारे दरिया के किनारे


अब्बास ही बस थे जैनब का सहारा

अब किसको पुकारे दरिया के किनारे


आकाश है सहमा धरती भी है लरज़ाँ

सूने हैं नजारे दरिया के किनारे


हैं बारिसे से कौसर और मालिक के जमजम

प्यासे हैं वह सारे दरिया के किनारे


बोली यह सकीना बाबा मुझे छोड़ा

अब किसके सहारे दरिया के किनारे


ये औन मोहम्मद गिरते हैं फरस से

या दीँ के मिनार दरिया के किनारे


आ जाओ फरिश्तों सब कर लो तिलावत

कुरआँ के हैं पारे दरिया के किनारे


तिशना अली ज़ादे और धूप की शिद्दत

भड़के हैं शरारे दरिया के किनारे


यह रब का करम है कर्बला में शजर ने

कुछ दिन हैं गुजारे दरिया के किनारे

कर्बो बला का देखिए मन्जर लहू लहू

 कर्बो बला का देखिए मन्जर लहू लहू

अकबर लहू लहू कहीं असगर लहू लहू


हो जाता दीने हक का मुक़ददर लहू लहू

होते न अगर सिब्ते पयम्बर लहू लहू


भर कर के रंग दीने रिसालत मुआब में

हैं गुलशने अली के गुले तर लहू लहू


गिरते हुए सम्भाली जो नाशे शहे हुसैन

जिब्रील के भी हो गए शहपर लहू लहू


बहता है खूने वारिस कौसर लबे फुरात

होती है चश्मे साक्रिये कौसर लहू लहू

तस्वीर शहे दीं है जौ बार ताजिये में

 तस्वीर शहे दीं है जौ बार ताजिये में

शब्बीर के बिखरे हैं अनवार ताजिये में


ख्वाजा से कोई पूछे वारिस से कोई जाने

शब्बीर का होता है दीदार ताजिये में


अब्बास के बाजू हैं अकबर का भी लाशा है

देखे तो कोई दिल से इक बार ताजिये में


शब्बीर की कुर्बानी यह याद दिलाता है

आका का झलकता है ईसार ताजिये में


हां इस लिए जाते हैं हम उसकी जियारत को

खुलते हैं शहादत के असरार ताजिये में


शब्बीर के सदके में अल्लाह शिफा देगा

जा जाकर लग जा ऐ बीमार ताजिये में

याद आ गये हैं हैदरे कर्रार या हुसैन

 याद आ गये हैं हैदरे कर्रार या हुसैन

जिस दम उठायी आप ने तलवार या हुसैन


दुनिया में बस उसी का है मेयार या हुसैन

उल्फ्त में जो है आपकी सरशार या हुसैन


दुश्मन हुए हैं बर सरे पैकार या हुसैन

चश्मे करम है आपकी दरकार या हुसैन


अहले निगाह कहते हैं आलम में हर तरफ

बिखरे हुए हैं आपके अनवार या हुसैन


जिस पर वफा को नाज रहेगा अबद तलक

इतने अजीम हैं तेरे अन्सार या हुसैन


हर फर्द की जबान पे होगा तुम्हारा नाम

इक दिन पुकारेंगे दरो दीवार या हुसैन


अल्लाह ने किया तुम्हें बे मिस्लो बे मिसाल

जन्नत के नौजवानों के सरदार या हुसैन


यह भी करम है आपका माँ की है ये दुआ

देखा शजर ने है तेरा दरबार या हुसैन

हबीबे शाफए महशर का नाम है शब्बीर

 हबीबे शाफए महशर का नाम है शब्बीर

फिदाये साहिबे कौसर का नाम है शब्बीर


रजा ए खालिक अकबर का नाम है शब्बीर

वकारे दीन पयम्बर का नाम है शब्बीर


शुजाए फातहे खैबर का नाम है शब्बीर

सवारे दोशे पयम्बर का नाम है शब्बी


जो पूछा हमसे नकीरैन ने तो हम बोले

हमारे आका का सरवर का नाम है शब्बीर


सिराते हक से भटकने का हम को खौफ नहीं

हमारी राहों के रहबर का नाम है शब्बीर


उन्ही ने दीन बचाया है जान को दे कर

कतीले दीने पयम्बर का नाम है शब्बीर


दिलो निगाह में जिसकी थी अजमते काबा

शजर एक ऐसे दिलावर का नाम है शब्बीर

याद आयी करबला हम को तो हम रोने लगे

 याद आयी करबला हम को तो हम रोने लगे

एक हम क्या हूरो गिलमाने इरम रोने लगे


बाजुए अब्बास अकबर का गला आका का सर

लिखते लिखते खून का किस्सा कलम रोने लगे


फर्ते गम से जब अली अकबर को रोना आ गया

ऐसा लगता था नबी ए मोहतरम रोने लगे


जब सुनायी हमने उनको दास्ताने करबला

क्या है जिक्र इन्सां का पत्थर के सनम रोने लगे


पढ़के ख़त में हज़रते सुगरा की बीमारी का हाल

बादशाहे करबला बा चश्मे नम रोने लगे


करबला में सब उजड़ जायेगा जहरा का चमन

जब कहा जिब्रील ने शाहे उमम रोने लगे


जब अली का फूल असगर प्यास से बेकल हुआ

देख कर उसको गुलिस्ताने इरम रोने लगे


मरसिया लिखने जो बैठे करबला का हम शजर

सोच कर ढाये गये जुल्मो सितम रोने लगे

या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली

 तुम हो जहरा के जिगर पारे हो तुम नूरे नबी

या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


नूरे हक नूरे अज़ल शम्मे शबिस्ताने अरब

शाहे दी शाहे मुबीं शाहे शहीदाने अरब

हो अरब या हो अजम धूम है हर सिम्त तेरी


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


फिर से हर सिम्त अन्धेरों की घटा छाई है

चार सू आदा की यलगार है तन्हायी है

फिर से आवाज तुझे देती है ये आल तेरी


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


दूर हूं तुम से अगर गम नहीं करना सुगरा

अश्क बरसाना नहीं आहें न भरना सुगरा

कितना नजदीक है घर से तेरे दरबारे नबी


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


सुन्न्ते सरवरे आलम का पता है यारो

करबला खाक नशीनों की जगह है यारो

इन्किसारी की अदा हम को इसी जा से मिली


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


जुल्म के बाब जो करबल में हैं मफतूह हुये

आले सरकार के जब जिस्म हैं मजरूह हुये

आज बेचैन है तैबा में बहुत रूहे नबी


या हुसैन इब्ने अली या दुसैन इब्ने अली


उम्मती आयेगें पीने वो पिलाने के लिये

तब लईं तरसेंगे उस जुमरे में आने के लिये

जब सबील होगी सरे हश्र तेरी कौसर की


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली


कोई मोनिस कोई गमख्वार नहीं हो सकता

आपसा अय मेरे सरकार नहीं हो सकता

इस शजर पे भी हो सरकार नजर रहमत की


या हुसैन इब्ने अली या हुसैन इब्ने अली

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