ऐ खुदा के पाक महमां अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा
तुझमें ही नाजिल हुआ कुरआन है
चन्द ही दिन का अब तू महमान है
कर रहे है जिन्न व इन्सां अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा
खुलते हैं इस माह में जन्नत के दर
बन्द हो जाते हैं अबवाबे सकर
कैद हो जाता है शैतां अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा
रब करम फरमाता है इस माह में
रिज्क भी बढ़ जाता है इस माह में
मुश्किलें होती हैं आसाँ अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा
हिज्र से है गमजदा हर रोजा दार
छोड़ कर जाती है अब फसले बहार
गमजदा है हर गुलिस्तां अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा
दूर करके हम को हर आजार से
मगफिरत से रहमतो अनवार से
जा रहा है भर के दामां अलविदा
अल विदा ऐ माहे रमज़ाँ अलविदा