شبیر کے جیسا کوئی سردار نہیں ہے
زینب سا کوئی قافلہ سالار نہیں ہے
شبیر کو آقا ہی کہا آخری دم تک
عباس دل آور سا وفادار نہیں ہے
حیدر نے سدا گرتے ہوؤں کو ہے سنبھالا
حیدر سا زمانے میں مددگار نہیں ہے
کہتی تھی یہی شامِ غریباں کی سیاہی
زینب تیرے جیسا کوئی جی دار نہیں ہے
وہ رب کا وفادار کبھی ہو نہیں سکتا
جو کربلا والوں کا وفادار نہیں ہے
کوئی بھی بہادر نہیں شبیر کے جیسا
شبیر کی تلوار سی تلوار نہیں ہے
اففان پیا جس نے ہے جامِ غمِ کوثر
وہ زم زم و کوثر کا طلبگار نہیں ہے
शब्बीर के जैसा कोई सरदार नहीं है
जैनब सा कोई क़ाफ़िला सालार नहीं है
शब्बीर को आक़ा ही कहा आख़री दम तक
अब्बासे दिलावर सा वफ़ादार नहीं है
हैदर ने सदा गिरते हुओं को है संभाला
हैदर सा ज़माने में मददगार नहीं है
कहती थी यही शामें ग़रीबां की सियाही
ज़ैनब तेरे जैसा कोई जीदार नहीं है
वो रब का वफ़ादार कभी हो नहीं सकता
जो कर्बला वालों का वफ़ादार नहीं है
कोई भी बहादुर नहीं शब्बीर के जैसा
शब्बीर की तलवार सी तलवार नहीं है
अफ़्फ़ान पिया जिसने है जामें ग़में कौसर
वो ज़म ज़म ओ कौसर का तलबगार नहीं है
shabbir ke jaisa koi sardar nahin hai