ادب سے چوم لے ہر ذرہ تو مدینے کا

 

अदब से चूम ले हर ज़र्रा तू मदीने का
कि यह मक़ाम है नादाँ बड़े क़रीने का

है जिसमे जज़्बऐ ज़ौक़े सफर मदीने का
इसी हयात में बस ज़ाएक़ा है जीने का
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बता रही है हमें सूरहे अलम नशराह

है गोशा गोशा मुजल्ला नबी के सीने का

वो जिसकी आल है कश्तीए नूह की मानिन्द
है नाखुदा वही लोगो मेरे सफीने का

करम की एक नज़र इसपे रहमते आलम
न टूट जाए भरम दिल के आबगीने का

कभी तो चमकेगा अपने नसीब का तारा
कभी तो तैबा में मौक़ा मिलेगा जीने का

चमन में सारे गुलाबों का ताजदार बना
गुलाब पा के उतारा तेरे पसीने का

है सोज़ रिंद में अब भी बिलाल सी मस्ती
सलीक़ा हो मए इश्क़े नबी जो पीने का

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