رحمت کونین کا جسکو گھرانہ چاہئے

रहमते कौनैन का जिसको घराना चाहिये
उसको कुत्बे दो जहाँ के दर पे आना चाहिये

आपकी तौसीफ़ लिखने के लिये कुत्बुल मदार

क़ाविशे अहले क़लम को एक ज़माना चाहिये

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औलियाऐ हक़ यह कहते हैं कि हर एक सिलसिला

निस्बते कुत्बे दो आलम से सजाना चाहिये


इस दयारे पाक में है हर तरफ़ नूरे वफा

हर कुदूरत को यहाँ दिल से मिटाना चाहिये



आऐ जब कुत्बे दो आलम दी मुनादी ने निदा

साकिनाने हिन्द तुमको मुस्कुराना चाहिये


एक इशारे में बदल देते हैं तक़दीरें मदार

सोज़ तुझको भी मुक़द्दर आज़माना चाहिये

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