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ऐ शहे आली मकाम अस्सलातु वस्सलाम

 ऐ शहे आली मकाम अस्सलातु वस्सलाम

ऐ शहीदों के इमाम अस्सलातु वस्सलाम


आपकी ताजीम कुरआँ ने हमें सिखलाई है

काबिले सद एहतेराम अस्सलातु वस्सलाम


वाह बातिल के न हार्यों में दिया है तू ने हाथ

जान दे दी हक के नाम अस्सलातु वस्सलाम


आप पर रो रो के भेजा याद आई जिस घड़ी

कर्बला की हमको शाम अस्सलातु वस्सलाम


ऐ शहीदे कर्बला इनके भी दामन को भरो

कह रहे हैं यह गुलाम अस्सलातु वस्सलाम


इस जहां में ही नहीं महशर के दिन भी बोलेंगे

पी के सब कौसर का जाम अस्सलातु वस्सलाम


भेजते हैं दोस्त क्या दुश्मन भी अत तहिय्यात में

आले पैगम्बर के नाम अस्सलातु वस्सलाम


फख्र है कि दीँ के खातिर तीर खाकर हो गए

हज़रते असगर तमाम अस्सलातु वस्सलाम


कर्बला ही क्या जमी के जुर्रे जर्रे आप पर

भेजते हैं सुब्हो शाम अस्सलातु वस्सलाम


जब पढ़ी दिल से है जिसने दास्ताने कर्बला

बोल उठे सब खासो आम अस्सलातु वस्सलाम


हजरते सुगरा, सकीना, जैनबो उम्मे रुबाब

इतरते खैरुल अनाम अस्सलातु वस्सलाम


हज़रते सुगरा का सारा घर चला है कर्बला

कह रहे हैं दर व बाम अस्सलातु वस्सलाम


है शजर की इल्तजा देखे यह जाकर के कभी

कर्बला की सुब्हो शाम अस्सलातु वस्सलाम
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