سر سجدهٔ خالق میں ہے اور لب پہ دعا ہے

 

सर सज्दए ख़ालिक़ मे है और लब पे दुआ है
उम्मत के लिये क्या नहीं आक़ा ने किया है

अल्लाह रे क्या अज़मते महबूबे खुदा है
खुद अर्श-ए-बरीं बढ़ के क़दम चूम रहा है
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क्या सल्ले अला गुलशने महबूबे खुदा है

जो फूल है खुशबूऐ मौहम्मद में बसा है

उस बच्चे को क्या होगा ग़में दर्द यतीमी
जो रहमते कौनैन की गोदी में पला है

क्या अपनी जुबाँ से कहूँ हाले ग़में दौराँ
जो बीत रही है मेरे आक़ा को पता है

बस गुम्बदे ख़ज़रा की ज़ियारत हो मुयस्सर
दिल में कोई ख्वाहिश ही नही इसके सिवा है

दुनिया के शहनशाहों से बेहतर है वो ए सोज़
आका की गुलामी का शरफ़ जिसको मिला है

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