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اے مدار جہاں تم پہ لاکھوں سلام

 


رہبر عارفاں تم پہ لاکھوں سلام
اے مدار جہاں تم پہ لاکھوں سلام

فیض پاتا ہے تم سے ہر اک سلسلہ
تم ہو محسن تو پهر کیوں نہ بهیجیں بهلا
اولیاء زماں تم پہ لاکھوں سلام
ائے مدار جہاں تم پہ لاکھوں سلام
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دلکشی تم سے باغ رسالت میں ہے
نور و نکہت ریاض ولایت میں ہے
جان ہر گلستاں تم پہ لاکھوں سلام
ائے مدار جہاں تم پہ لاکھوں سلام

تم زمانے کے آقا ہو زندہ ولی
راست ہے قلب احمد سے وابستگی
راز کے راز داں تم پہ لاکھوں سلام
ائے مدار جہاں تم پہ لاکھوں سلام

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ہم سے ہے دنیا میں اجالا ہم کو مداری کہتے ہیں

 

 ہم کو مداری کہتے ہیں


ہم سے ہے دنیا میں اجالا ہم کو مداری کہتے ہیں

گھبراتا ہے ہم سے اندھیرا ہم کو مداری کہتے ہیں


اظہار نسبت کرنا تو اپنا ہے دستور عمل

پیار ہے بس پیغام ہمارا ہم کو مداری کہتے ہیں

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بن کے مداری جینا ہے بن کے مداری مرنا ہے

 

बन के मदारी जीना है बनके मदारी मरना है


बन के मदारी जीना है बनके मदारी मरना है
जीवन की पेचीदा ड़ग़र पे और हमें क्या करना है

सूऐ ज़न वलियों से रखना जंग खुदा से करना है
तेरा हर मग़रूर इरादा टूटना और बिखरना है
जैसा किया फ़ैज़ान के मुन्क़िर अब वैसा ही भरना है
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टकराना है जुल्म के तूफानो से हमारा काम
कुत्बे जहाँ के दीवाने कब सोंचते हैं अंजाम
तूफाँ तो आते रहते हैं तूफ़ाँ से क्या डरना है

लिखले मुसाफिर अपने दिल पे कुत्बे जहाँ का नाम
छुप जाऐगा आज का सूरज ढल जाऐगी शाम
इस जीवन की छाँव में तुझको थोड़ी देर ठहरना है

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رحمت کونین کا جسکو گھرانہ چاہئے

रहमते कौनैन का जिसको घराना चाहिये
उसको कुत्बे दो जहाँ के दर पे आना चाहिये

आपकी तौसीफ़ लिखने के लिये कुत्बुल मदार

क़ाविशे अहले क़लम को एक ज़माना चाहिये

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औलियाऐ हक़ यह कहते हैं कि हर एक सिलसिला

निस्बते कुत्बे दो आलम से सजाना चाहिये


इस दयारे पाक में है हर तरफ़ नूरे वफा

हर कुदूरत को यहाँ दिल से मिटाना चाहिये



आऐ जब कुत्बे दो आलम दी मुनादी ने निदा

साकिनाने हिन्द तुमको मुस्कुराना चाहिये


एक इशारे में बदल देते हैं तक़दीरें मदार

सोज़ तुझको भी मुक़द्दर आज़माना चाहिये

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رسولوں میں ذیشان ہیں کملی والے

 

रसूलों में ज़ीशान हैं कमली वाले
दो आलम के सुल्तान हैं कमली वाले

मेरा सीना अर्जे मदीना बना है
मेरे दिल में महमान हैं कमली वाले

इन्ही से मिटी है खुदाई बुतों की
मुसलमाँ का ईमान हैं कमली वाले

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सरे हश्र भी ज़ेरे दामन है आसी
तेरे कितने एहसान हैं कमली वाले

चढ़े हैं जो तूफ़ाँ के तेवर तो क्या ग़म
हमारे निगेहबान हैं कमली वाले

ज़ियाए हक़ीक़त मिली सोज़ जिनसे
वो अनवारे कुरआन हैं कमली वाले

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نہ جانے کس قدر ہیں بے بہا کانٹے مدینے کے

 

न जाने किस क़दर हैं वे बहा काँटे मदीने के
गुलाबों के हैं दिल का मुद्दआ काँटे मदीने के

इताअत का यह ज़ौक़े वालिहाना देखले दुनिया
है दामन हज़रते सिद्दीक़ का काँटे मदीने केmadaarimedia.com

मिले मेराज मेरी आबला पाई को तैबा में
कभी कह दें जो मुझसे मरहबा काँटे मदीने के

न कर पामाल इनको यह हैं रश्के गुलशने जन्नत
अरे नादाँ तू आँखों से लगा काँटे मदीने के

ग़मे आले मुहम्मद की चुभन है इनके सीने में
लिये हैं दिल में दर्द करबला काँटे मदीने के

दयारे मुस्तफा की बादियों से दूर मत करना
खुदा से माँगते हैं यह दुआ काँटे मदीने के

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ادب سے چوم لے ہر ذرہ تو مدینے کا

 

अदब से चूम ले हर ज़र्रा तू मदीने का
कि यह मक़ाम है नादाँ बड़े क़रीने का

है जिसमे जज़्बऐ ज़ौक़े सफर मदीने का
इसी हयात में बस ज़ाएक़ा है जीने का
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बता रही है हमें सूरहे अलम नशराह

है गोशा गोशा मुजल्ला नबी के सीने का

वो जिसकी आल है कश्तीए नूह की मानिन्द
है नाखुदा वही लोगो मेरे सफीने का

करम की एक नज़र इसपे रहमते आलम
न टूट जाए भरम दिल के आबगीने का

कभी तो चमकेगा अपने नसीब का तारा
कभी तो तैबा में मौक़ा मिलेगा जीने का

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آقائے دوجہاں پہ جو قربان ہوگئے

 

आक़ाऐ दो जहाँ पे जो कुरबान हो गऐ
अल्लाह ही जाने कितने वो ज़ीशान हो गऐ

सच्चा रसूल आमिना बीबी का लाल है
काफ़िर यह कह के साहिबे ईमान हो गऐ
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दीवानगीये इश्क़े मौहम्मद में हूँ मगन

अब मरहले हयात के आसान हो गऐ

अल्फाज़ मैने नात में कुछ एसे चुन लिये
महशर में जो नजात का सामान हो गऐ

आवाज़े हक़ जो काबे में गूँजी तो यूँ लगा
पत्थर भी कलमा पढ़ के मुसलमान हो गऐ

इस दर्जा पाक कर दिया अल्लाह ने उन्हे
सिब्ते रसूल बोलता कुरआन हो गऐ

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ہر ظلم ہوا برباد کہ آئے میرے پیار نبی

 

हर जुल्म हुआ बर्बाद कि आए मेरे प्यारे नबी
अब कोई न हो नाशाद कि आए मेरे प्यारे नबी

रहमत के बादल बरसे हैं दुनिया की सूखी धरती पर
गुलशन में बहारें आई हैं सब फूलें फलें फल फूल शजर
मालिक ने सुनी फरियाद कि आए मेरे प्यारे नबी
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अब कुफ्र की दुनिया सूनी है सन्नाटे हैं बुत खानो में

हर सिम्त है इक शोरे मातम अब बिदअत के ऐवानो में
बातिल की हिली बुनियाद कि आए मेरे प्यारे नबी

बिखरे हैं सदाक़त के जलवे फारूक़िय्यत की बस्ती में
हैं नूरे सखावत नूरे विला इन्सानियत की हस्ती में
हर शख्श हुआ आबाद कि आए मेरे प्यारे नबी

सय्याद के पिंजरों के अन्दर दुख दर्द भरीं थीं आबाज़ें
ज़ालिम दुनिया ने पर काटे और छीन लीं जिनकी परवाज़ें
वो पंछी हुऐ आज़ाद कि आए मेरे प्यारे नबी

है सोज़, नहीं मज़लूमों को अब जुल्मों तशदुश का ख़तरा
आमद से उनकी खुश होकर कहता है यतीम इक इक बच्चा
अब होगी मेरी इमदाद कि आए मेरे प्यारे नबी

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کاش طیبہ میں آقا بلائیں

 

काश तैबा में आक़ा बुलाऐं
सर के बल हम मदीने को जाऐं

एक दिन बारगाहे नबी में
अपनी मक़बूल होंगी दुआऐं
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मिट गई कुफरो बिदअत की ज़ुल्मत

नूरे हक़ की जो फैलीं ज़ियाऐं

मैं गुलामे शहे अम्बिया हूँ
हादिसे मुझसे दामन बचाऐं

लब पे आया जो नामे मुहम्मद
हो गयीं दूर सारी बलाऐं

जाके बादे सबा तू मदीना
अर्ज़ कर दे मेरी इल्तिजाऐं

सोज़, नाज़ाँ है रहमत पे उनकी
दो जहाँ जिनपे कुरबान जाऐं

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