जब जुल्म के बादल छाने लगे गुलशन के गुल कुम्हलाने लगे इन्सान जब अपनी बच्ची को हैं जीते जी दफनाने लगे हर सिम्त जफाओ जुल्म का जब है गर्म हुआ बाजार मुहम्मद आ गए मुहम्मद आ गए अब कोई भी अपनी बेटी को ...
चले हो जाएरे खैरुल वरा मदीने में हमारे हक में भी करना दुआ मदीने में दरे रसूले मुअज़्ज़म पे हाजिरी के लिए फरिश्ते आते हैं सुब्हो मसा मदीने में वहां का तुर्श भी शीरो शकर से बेहतर है किसी भी शय को ...
ज़मीं पर कोई भी सब्ज़ा कभी पैदा नहीं होता नबी के सब्ज़ गुम्बद का अगर सदका नहीं होता न होते चाँद और तारे न सूरज की किरण होती सरापा नूर है जो उनका गर जलवा नहीं होता वहां से लौट कर हर लम्हा बस यह फ...
तेरे दर से खाली लौटा कोई आदमी नहीं है तेरे जैसा सारी दुनिया में कोई सखी नहीं है कभी उसके दिल में दाखिल नहीं होता नूरे ईमाँ तेरा इश्क जिसके सीने में मेरे नबी नहीं है तू ही मेरे गम का दरमां तुम्ही...
खुदा रा मेरी आरजू है कि बीते मेरी उम्र नातें सुनाते सुनाते मरूं इश्के अहमद को सीने में लेके उठूं कब्र में गीत आका के गाते कभी उठ के आजाइये मेरे आका मदीने से खुशियों की बारात ले कर कि इक उम्र बीत...
वजहे शक्कुल कमर फख्रे जिन्नो बशर ऐ शहे कुन फकां तुम कहां हम कहां हम है मुहताज और तुम हो मुख्तारे कुल मोनिसे वे कसां तुम कहां हम कहां तुम शफी और हम सब गुनहगार हैं तुम हो मतलूब और हम तलबगार है तुम...
लब पे शम्सुद्दुहा के तबस्सुम खिला दहर में हर तरफ रोशनी छा गई हैं फिज़ाएं मुअत्तर मुअत्तर हुईं जुल्फे वल्लैल जिस दम है लहरा गई हश्र के रोज पास अपने कुछ भी न था नेमते गदहे खैरुल वरा के सिवा बढ़ के रहमत ...
आए जो कभी तूफान जब मुश्किल में हो जान हुजूर आ जाएंगे जिन पर है यह जाँ कुरबान वह नबियों के सुल्तान हुजूर आ जाएंगे जब आफ्त कोई आएगी तसकीन दिलाने आएंगे ईमान है कामिल यह अपना सरकार बचाने आएंगे हम सब...
इश्के नबी का आँख में भर के तू नूरी काजल चल मदीने चल चल मदीने चल दर पे पहुंच के प्यारे नबी के तुम बा चश्मे नम कहना उस दरबारे आली में इक रोज तो पहुंचे हम कहना उनसे कहना हमको बुला लें आज नहीं तो कल...
काश उनके गुम्बदो मीनार के साए तले नात लिक्खूं रौजा ए सरकार के साए तले इल्मे हक की रोशनी सारे जहां में छा गई सूरए इक्रा जो आई गार के साए तले अर्श है कुर्सी कलम है जन्नतुल फिरदौस है गुम्बदे खिजरा ...